भगवान श्रीकृष्ण पूरे विश्व में पूजे जाते हैं। वह हम सबके भगवान है या यूं कहिए वह एकदम हमारे जैसे हैं हमारे आपके बीच के इंसानों जैसे।
रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता "कृष्ण की चेतावनी" की कुछ लाइनें याद आ रही हैं "सब जन्म मुझी से पाते हैं फिर लौट मुझी में आते हैं"
श्री कृष्ण मर्यादाओं में बंधते नहीं है बल्कि नई मर्यादा रचतेे हैं। वे राधा के प्रेम में समाज की संकुचित मानसिकता को ना सिर्फ तोड़ते हैं बल्कि राधा को प्रेम के सर्वोच्च शिखर पर बैठाते हैं ।उनकी नजरों में प्रेम कोई अपराध नहीं है।
भगवान कृष्ण ने बचपन से ही अत्याचार का विरोध किया। बहुत सारे कष्टों को सहा। जन्म लेते ही अपने माता पिता को छोड़ा। पूतना, बकासुर, नरकासुर का वध किया। भगवान कृष्ण बहुत उदार रहे। उन्होंने गवालों के बच्चों को दूध माखन खिलाने के लिए माखनचोर कहलाना पसंद किया। द्रौपदी की लाज बचाई लेकिन उन्हें कमजोर और अशक्त नहीं किया। सुदामा, अर्जुन और द्रौपदी से निश्चल प्रेम किया लेकिन जरूरत पड़ने पर जयद्रथ जरासंध, और दुर्योधन को मारने में छल करने में भी संकोच नहीं किया।
लाख कष्ट सहे लेकिन अपनी मधुर मुस्कान नहीं छोड़ी। यशोदा मां से हट करना नहीं छोड़ा। कृष्ण बुद्धि और शक्ति के अद्भुत संतुलन के सबसे बड़े प्रतीक हैं।
युद्ध के मैदान में निराश अर्जुन को गीता का ज्ञान देने वाले श्री कृष्ण महायोगी, गुरु और कर्म के सिद्धांत के महान समर्थक हैं।
श्री कृष्ण समस्त 16 कलाएं विद्यमान है इसीलिए संपूर्ण अवतार माने गए हैं। श्री कृष्ण जगतगुरु हैं उन्होंने गीता के माध्यम से संपूर्ण सृष्टि को जीने का मार्ग दिखाया। कर्म योग की व्याख्या की। मनुष्यों को जन्म मरण के बंधन से छुड़ाकर मुक्ति का मार्ग दिखाया ।और कहा सबमे मैं हूं कोई दूसरा नहीं, किसी भी चीज में अधीन नहीं हो और ना किसी को अपने अधीन करो। मानव को समझाया कि निष्काम हो जाओ। सारी सृष्टि भगवान श्री कृष्ण की बनाई है मानव तो केवल कठपुतली है।
"हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की"
हम जब भी भटकते हैं तो भगवान कृष्ण हाथ पकड़ लेते हैं और अंतिम सांस तक जूझने की प्रेरणा देते हैं।मन में आकर कहते हैं कि "कोई भी दुख मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं, हारा वही जो लड़ा नहीं"
श्री कृष्ण ऐसे पथ प्रदर्शक हैं उनको बारंबार कोटि कोटि प्रणाम।
जेल में जन्मा लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं माखन चोर लिखूं या चित् चोर लिखूं नंदगोपाल पर कितना भी लिखूं फिर भी वह अपरिभाषित ही रहेगा।
यशोदा नंदन कृष्ण आत्म संयम की पूज्य मूर्ति हैं।उनसे हम जीवन में संतुलन की शिक्षा ले सकते हैं। और जब हमारे अंदर आत्म संयम होगा तभी हमारे जीवन में श्री कृष्ण का जन्म होगा।
इस कोरोना काल में आत्म संयम सबसे जरूरी है। भले ही इस साल कोरोना के कारण जन्माष्टमी का उल्लास और आनंद प्रत्यक्ष कम दिखे पर मन में तो श्री कृष्ण ही इस महामारी से जीतने की कला सिखा रहे हैं। जिस तरह महाभारत के युद्ध में कृष्ण नीति कौरवों को परास्त कर पांडवों का विजय हर्ष मनाती है उसी प्रकार हमें भी कोरोना के खिलाफ लड़ाई में आचार विचार और आहार-विहार के संयम नियम से विजय पानी है।भगवान कृष्ण ने सदैव यही शिक्षा और ज्ञान दिया है कि हमें अपने कर्म को करना नहीं भूलना है फिर बाकी तो भगवान संभाल ही लेंगे।
आज पूरी दुनिया ही कोरोना युद्ध लड़ रही है। जिसमें चिकित्सक, शासक, प्रशासक, आम जनता और समाज अपने अपने तरीके से कोरोना को हराने के लिए युद्ध कर रहे हैं।
इसलिए सच्ची श्रद्धा से हम सभी अपने कर्म का पालन करें और यही सच्चे अर्थों में श्रीकृष्ण को हमारी भक्ति और समर्पण होगा।
वरिष्ठ समाजसेवी अधिवक्ता एवं लेखिका
डॉ. कुसुम पांडेय
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