"अतिक्रमण का नाम--- बिगाड़े सारे काम" (Dr.Kusum Pandey)



अतिक्रमण का सीधा सा अर्थ है उचित मर्यादा यह सीमा से आगे बढ़ना अर्थात अपने कार्य अधिकार क्षेत्र की सीमा पार करके ऐसी जगह पहुंचने की क्रिया जहां जाना या रहना अनुचित मर्यादा के विरुद्ध या अवैध हो सही अर्थ में सीमा का अनुचित उल्लंघन ही अतिक्रमण कहलाता है।


एक शब्द के विविध अर्थों का लोगों ने दुरुपयोग करके सिर्फ अपने स्वार्थ की सिद्धि की है। जिस क्षेत्र में देखो वही अतिक्रमण--- राजनीति से लेकर सामान्य जीवन तक हर जगह अतिक्रमण नजर आता है।


वैसे तो यह सब तुम मुझे हमेशा ही परेशान करता है लेकिन आजकल तो कुछ ज्यादा ही नजर आने लगा है। अतिक्रमण का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है लेकिन आज मैं सिर्फ पार्किंग के लिए किए गए अतिक्रमण पर ही ध्यान आकर्षित करना चाहती हूं।

 बचपन में हम लोगों को  "रूल्स ऑफ द रोड" पढ़ाया गया था जिसमें हमें सड़क पर चलने के नियम बताए गए थे और वह इसी बात को इंगित करते थे कि हमें अपने फायदे के लिए दूसरे के हितों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। मैं वैसे भी नियम कायदे मानने में विश्वास करती हूं और जहां तक संभव हो दूसरे को परेशान नहीं करना चाहती। इसलिए दूसरों के द्वारा अतिक्रमण को देखकर मन बहुत आहत हो जाता है।


हां अभी कुछ दिन पहले हमारे एक रिश्तेदार घर आए और उन्हें घर से दूर गाड़ी खडी करनी पड़ी, ऐसा नहीं है कि मेरे घर तक गाड़ी नहीं आ सकती पर पड़ोसियों ने अपनी गाड़ियां लगा रखी तो उनको जगह ही नहीं मिली।


पहले लोग घर बनाते थे तो गाड़ी खड़ी करने की जगह घर के अंदर रहती थी और लोग गेट के अंदर ही गाड़ी गाड़ी खड़ी करते थे। लेकिन अब धीरे-धीरे सब लोगों को लगने लगा है कि सड़क भी तो हमारी है। फिर एक ने बाहर गाड़ी खड़ी करनी शुरू की फिर एक को देखकर दूसरा ,तीसरा और अब तो मुश्किल से हम और एक दो लोगों को छोड़कर सभी की गाड़ियां सड़क पर ही मिलेंगी।


तकलीफ तो इस बात की है कि लोगों के घर में गाड़ियां तो तीन-चार है पर सब रहेंगी सड़क पर। किसी के घर कोई मिलने आए तो आखिर वह अपनी गाड़ी लेकर कहां जाएं ???यह बात लोगों ने सोचा ही नहीं कि अगर सब लोग ऐसा करने लगे तो सड़क तो चलने के लिए बचेगी ही नहीं। और अगर आप किसी को मना करिए तो अपनी गलती ना मानकर मुह फुला लेता है।


इस तरह तो शहरों की सूरत बिगड़ती ही जा रही है। अक्सर शहरों में नया बना आधारभूत ढांचा पांच छह साल  बाद ही बढ़ती जनसंख्या के कारण नाकाफी लगने लगता है। ऐसे इलाके गंदगी, अतिक्रमण ट्रैफिक जाम प्रदूषण से जुड़ने लगते हैं। अनियोजित तरीके से बनी कॉलोनिया कोई बड़ा घर, बगल में ही छोटा घर ---पर गाड़ी तो सबके पास है। तो क्या यह नहीं होना चाहिए कि लोग घर बनाने से पहले यह भी ध्यान रखें कि गाड़ी खड़ी करने की जगह जरूर बनाएं।


यह बहुत ही शर्मनाक लगता है कि लोग किराएदार तक का ध्यान रखकर घर बनाते हैं लेकिन पार्किंग का ध्यान नहीं रखना चाहते।

 सही मायने में शहरों के नियोजित विकास का भार जिन शहरी निकायों पर हैं उन्हें सक्षम और जवाबदेह बनाने में राज्य सरकारों के अलावा सभासदों, मेयरो और विधायकों की भी जिम्मेदारी है। अगर मकान का नक्शा पास करते समय इस बात पर ध्यान दिया जाए कि जितनी जमीन हो उसी के हिसाब से गाड़ी और पार्किंग का ध्यान दिया जाए तो समस्या काफी हद तक कम हो सकती है।लेकिन लोगों का शौक बनता जा रहा है जो सड़क पर गाड़ी खड़ी करना।


शहरों के नियोजित विकास हेतु जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही तय करने के लिए कोई ऐसा तंत्र विकसित होना चाहिए ताकि उनके काम का सतत्  आंकलन हो सके।

 सिर्फ फ्लाईओवर बना देने, मेट्रो बना देने या फिर सड़कों का चौड़ीकरण कर देने से किसी शहर का विकास नहीं होता है। असली शहरीकरण तो लोगों के अपनी मर्यादा में रहने से होता है। यदि आज हम  अतिक्रमण की समस्या से जूझ रहे हैं तो इसका कारण हम स्वयं हैं--- 


हमारी इच्छा शक्ति ही कमजोर है जो हमें मर्यादा तोड़ने के लिए विवश करती है और मन में लालच पैदा करती है।

यदि आज हमारे शहरों में अतिक्रमण की समस्या नहीं सुलझ रही है तो इसके लिए वास्तव में धन का अभाव नहीं वरन लोगों की इच्छा शक्ति का अभाव है। 


यदि आज से हम सब लोग यह सोच ले कि हमें अपनी गाड़ियां अपने गेट के अंदर करनी है तो आधी समस्या तो कम हो जाएगी।लेकिन इसके लिए संकल्प लेना जरूरी है। क्योंकि संकल्प से बड़ी कोई शक्ति नहीं है और बदहाल पार्किंग अतिक्रमण को रोकने के लिए इतना संकल्प तो लेना ही चाहिए।

धन्यवाद.....

डॉ. कुसुम पांडेय

वरिष्ठ समाजसेवी, अधिवक्ता एवं लेखिका

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