कुछ दिन पहले ही सीबीएसई बोर्ड ने अपने पाठ्यक्रम में 30% की कटौती की है और पिछले हफ्ते ही भारत के सबसे बड़े बोर्ड यूपी बोर्ड ने भी पाठ्यक्रम कम करने की घोषणा की है जो कि शिक्षा क्षेत्र में एक बहुत अच्छी खबर है।
हमेशा कहा जाता है कि सुनहरे भविष्य का रास्ता तो स्कूलों से निकलकर जाता है और किसी भी देश का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी शिक्षा की गुणवत्ता किस स्तर की है। उससे बच्चों को वास्तव में कितना कौशल सीखने को मिल रहा है और शिक्षा की व्यवस्था उचित ढंग से हो रही है।
लेकिन बहुत सालों से चली आ रही है शिक्षा व्यवस्था इस महामारी के चलते असमंजस में पड़ गई है। इस कोरोना महामारी ने पूरे विश्व में 200 करोड़ बच्चों की शिक्षा को प्रभावित किया है। कभी सुनने में नहीं आया था कि बोर्ड की परीक्षा ना हो पाई हों लेकिन कोरोना काल में सच में ऐसा हो ही गया है। अभी आगे की स्थिति भी बहुत स्पष्ट नहीं है।
स्कूल कब खोले जाएं??? क्या बच्चों को स्कूल भेजा जाए??? बच्चे स्कूल में कितने सुरक्षित हैं??? आज बहुत सारे ऐसे प्रश्न हैं जिससे अभिभावक, स्कूल प्रशासन दोनों ही परेशान हैं और दोनों की घबराहट उचित भी है क्योंकि बच्चों को खतरे में तो कोई भी नहीं डालना चाहेगा।
बच्चे स्कूल नहीं जा पाए तो स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई शुरू करवा दिया लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई की भी अपनी सीमाएं हैं। हां यह जरूर है कि खाली बैठने से यह विकल्प अच्छा ही है और सामान्य परिस्थितियों में भी ऑनलाइन शिक्षा ने अपना स्थान बना लिया है और इसका सकारात्मक उपयोग बड़े से लेकर छोटे बच्चों तक सभी के साथ हो रहा है और आगे भी होता ही रहेगा।
इस समय की सबसे बड़ी समस्या है 2020- 2021 सत्र के लिए बच्चे किस प्रकार से तैयार किए जाएं। अनिश्चय की स्थिति से कैसे बाहर निकाला जाए?? ऐसे में सीबीएसई बोर्ड ने पाठ्यक्रम में 30% भाग को अध्यापन और मूल्यांकन से बाहर कर दिया है। इस निर्णय से स्कूल के बच्चों में एक नए उत्साह और प्रसन्नता की लहर दौड़ गई है।
यूपी बोर्ड ने भी पाठ्यक्रम कम करने की घोषणा कर दी है और उम्मीद है कि सभी राज्यों के बोर्ड भी जरूर ऐसा फैसला करेंगे।
बस्ते का बोझ पिछले 30 वर्षों से चर्चा का विषय रहा है। जब हमारे बच्चे छोटे थे तो भी लगता था कि कैसे अपने वजन से ज्यादा का बैग पीठ पर लादे हैं और बहुत सारे अध्याय तो स्कूल में पढ़ाये भी नहीं जाते थे, बस मोटी मोटी किताबें और मजदूरों जैसे ढोते बच्चे।
इस समय देश में स्कूली शिक्षा में 2005 में बनाए गए पाठ्यक्रम और उसके अनुसार बनी पाठ्यपुस्तक से ही चल रही हैं, लेकिन यह सही नहीं है। सजग और सतर्क देशों में पाठ्यक्रम और पुस्तके हर 5 वर्ष में बदली जाती हैं और आज के इस दौर में इसकी महत्ता सबको समझ आ रही है।
हमारे देश में प्राचीन काल में गुरुकुल शिक्षा पद्धति थी। जिसमें सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं वरन् व्यक्तित्व निर्माण पर पूरा ध्यान दिया जाता था। जो जिस गुण में निपुण हो उसी के अनुरूप उसको अवसर मिलता था और आज के समय में भी कौशल शिक्षा का महत्व ही दिखाई पड़ रहा है।
ऐसे में बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए, शिक्षा को लाभप्रद बनाने के लिए उसको बोझ ना बना कर अपितु रुझान पैदा किया जाए जिससे इस गला काट प्रतिस्पर्धा से बच्चे थोड़ा राहत पा सकें।
शिक्षा का बोझ कम होने से बच्चों को अपनी रूचि के अनुसार कार्य करने का भी समय मिल सकेगा जिससे उनका भविष्य सुनहरा होगा और अभिभावकों को भी सुकून मिलेगा।
धन्यवाद
डॉ. कुसुम पांडेय
वरिष्ठ समाजसेवी अधिवक्ता एवं लेखिका
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