डीएवीपी द्वारा जारी वर्तमान विज्ञापन नीति पर तत्काल रोक लगाए सरकार:-शास्त्री

ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार आचार्य श्रीकांत शास्त्री जी ने कहा की सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी प्रिंट मीडिया विज्ञापन नीति-2020 अखबार वालों के विरुद्ध है जिसका विरोध करते हुए श्री शास्त्री जी ने इस नीति को तत्काल रोक लगाने की प्रधानमंत्री से मांग की

साथ ही यह भी कहा कि ज्ञापन ब्यूरो आॅफ आउटरीच कम्यूनिकेशन (डीएवीपी) के महानिदेशक द्वारा जारी विज्ञापन नीति एकदम मनमानी है। यदि इस नीति को तत्काल नहीं रोका गया तो देश भर के हजारों प्रकाशको एवं एसोसिएशन के देशभर के पदाधिकारी एवं सदस्यों द्वारा डीएवीपी आफिस पर एकत्रित होकर इस नीति का पुरजोर विरोध किया जाएगा।

शास्त्री जी ने कहा है कि देश कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है और राष्ट्रव्यापी लाॅकडाडन के कारण प्रिंट मीडिया क्षेत्र संकटकालीन और बदहाली व लड़खड़ाते दौर से गुजर रहा है, ऐसे में नई विज्ञापन नीति जारी करना गला घोटने जैसा है। नई विज्ञापन नीति देश के चौथे स्तंभ पर सीधा प्रहार करने और उसे दबाने की खड़यंत्र कारी साजिश है।

शास्त्री जी ने इस नीति को लघु एवं मझोले समाचार पत्रों पर यह कुठाराघात बताया और इसे सरकार को बदनाम करने की सोची-समझी रणनीति बताई और डीएवीपी द्वारा जारी प्रिंट मीडिया विज्ञापन नीति-2020 का देश भर के प्रकाशकों के विरुद्ध है। डीएवीपी अपनी 2016 में जारी विज्ञापन नीति में की गई मनमानी से संतुष्ट नहीं हुई तो 2020 में नई नीति जारी कर दी, जो सरासर अन्याय है।

दिनांक - 26.07.2020 को कोराना काल में काव्य सृजन महिला मंच, दिल्ली का बेहद शानदार और जानदार प्रथम ऑन लाइन कवि सम्मेलन



वर्ष - 2019 में स्थापित काव्य सृजन महिला मंच, भारत के संस्थापक श्री शिव प्रकाश जौनपुरी जी के मार्गदर्शन में  "काव्य सृजन महिला मंच "  गत दो वर्षों से निरंतर साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियां कर रहा है। उसी क्रम में वर्ष - 2020 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर काव्य सृजन महिला मंच द्वारा  "दिव्यांग समर्था " सम्मान समारोह का आयोजन किया जाना था जो संपूर्ण विश्व में व्याप्त कोरोना वायरस महामारी के कारण स्थगित करना पड़ा क्योंकि चलना और चलते रहना ही सृष्टि का नियम है तो उसी फेहरिस्त में इस कोरोना वायरस महामारी के संक्रमण काल में भी रचनात्मकता को बचाए और बनाए रखते हुए
 "काव्य सृजन महिला मंच"  दिल्ली की पश्चिमी दिल्ली, इकाई द्वारा कारगिल विजय के शौर्य व पराक्रम दिवस के अवसर पर रविवार, दिनांक - 26/07/2020 को ऑन लाइन, काव्य गोष्ठी का बहुत ही शानदार व जानदार आयोजन किया गया।

"काव्य सृजन महिला मंच"  की राष्ट्रीय अध्यक्ष, डॉ0 संगीता शर्मा  'अधिकारी '  इस ऑन लाइन कवि गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं और उनकी गरिमामय उपस्थिति में काव्य सृजन महिला मंच, दिल्ली की पश्चिमी दिल्ली इकाई द्वारा इस प्रथम शानदार ऑन लाइन, काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। 

किसी भी कार्य की निर्विघ्न समाप्ति के लिए हम उस परमपिता परमात्मा का स्मरण करते हैं और उसी क्रम में काव्य सृजन महिला मंच द्वारा आयोजित काव्य की इस फुहार का शुभारम्भ काव्य सृजन महिला मंच, सचिव, यश जैन जी ने भावपूर्ण सरस्वती वन्दना से किया।  जिसको सफलता की ओर लें जाते हुए काव्य सृजन महिला मंच, पश्चिमी दिल्ली की अध्यक्ष श्रीमती सुलेखा अग्रवाल जी ने अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्तियों के साथ बेहतरीन संचालन से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई ।

सावन के इस मनभावन उत्सव और कारगिल विजय दिवस के अवसर पर अभिव्यक्ति की दोहर को जीते हुए मन के मनके तराशने के लिए एक नई उमंग व उत्साह के साथ सभी कवयित्रियों ने प्रेम, समाज, बेटियों, माँ, प्रकृति, त्योहार और राष्ट्र - प्रेम आदि पर आधारित एक से बढ़कर एक रचनाएं पढ़ी और सभी ने काव्य पाठ का भरपूर आनन्द उठाया।

काव्य सृजन महिला मंच, पश्चिमी दिल्ली के द्वारा आयोजित इस ऑनलाइन काव्य गोष्ठी कार्यक्रम में आमंत्रित चार सम्मानित कवयित्रियों यथा सुश्री डॉ पूजा सिंह गंगानिया, सुश्री सीमा दहिया, सुश्री डॉ पंकज, सुश्री नीतू पांचाल के साथ - साथ आयोजन की संचालक श्रीमती सुलेखा अग्रवाल, संयोजक श्री यश जैन तथा इस काव्य गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ0 संगीता शर्मा अधिकारी ने भी अपनी - अपनी कलम से निकले हुए शब्दों से सभी के मन को मोह कर इस कार्यक्रम को एक नई पहचान देते हुए सभी श्रोताओ को काव्य पाठ का आनंद कराया तथा अपने शब्दों की मिठास और कलम से फैली हुई चारो ओर उजास से इस कार्यक्रम को एक उच्च स्तर पर सम्मान दिलाकर काव्य गोष्ठी के नए प्रतिमान स्थापित किए। साथ ही अपनी काव्य रस की वर्षा से सभी को मंत्रमुग्ध कर आनन्दित किया।

सभी गरिमामय सम्मानित कवयित्रियों के साथ साथ श्रीमती उषा शर्मा जी, श्री पंकज तिवारी जी, सुश्री श्रुति आदि सभी साहित्यकारों की गौरवांवित उपस्थिति ने काव्य गोष्ठी को सफल बनाया।

" काव्य फुहार "  की इस यात्रा में शामिल सभी आमंत्रित सम्मानित कवयित्रियों तथा आयोजन के संयोजक व संचालक को प्रोत्साहन एवं उत्साहवर्धन हेतु स्मृति चिह्न के रूप में काव्य सृजन महिला मंच, सामाजिक - साहित्यिक - सांस्कृतिक संस्था द्वारा  " प्रशस्ति पत्र "  प्रदान किया गया जिसमे उनकी गौरवमयी भूमिका को प्रणाम करते हुए उनके  रचनात्मक सहयोग और दीप्तिमान - प्रेरक व उज्ज्वल भविष्य की कामना की गई। 

काव्य सृजन महिला मंच संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष और इस काव्य गोष्ठी की मुख्य अतिथि डॉ0 संगीता शर्मा अधिकारी ने अपने वक्तव्य में सभी को प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया और काव्य सृजन महिला मंच संस्था से जुड़ने का आग्रह करते हुए कहा कि " आप सब तो इस साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सेवाभाव से जुड़ें ही और अन्य दूसरे लोगों को भी जुड़ने के लिए प्रेरित करके न केवल साहित्य अपितु संस्कृति का भी संवर्धन करते हुए समाज सेवा में भी एक अहम और बहुमूल्य योगदान दें। उन्होंने यह भी कहा कि आप सभी के स्नेह और सहयोग से ही काव्य सृजन महिला मंच भविष्य में भी इसी प्रकार के अनेक रचनात्मक आयोजन करता रहेगा और साथ ही साहित्य की दुनिया में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाते हुए संस्था को सफलता के शिखर तक पहुंचाएगा। "

अंत में सभी लब्धप्रतिष्ठित - सम्मानित कवयित्रियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम का बहुत ही शानदार और सफलतापूर्वक समापन किया गया।

रक्षाबंधन :- रश्मि शुक्ला



सब पर्व से प्यारा पर्व है रक्षा बंधन का पर्व।
जीवन भर साथ निभाना भाई भूल न जाना मनाना रक्षा बन्धन का पर्व।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई भाई बन  आशीर्वाद देता रक्षा बंधन का पर्व।
इस वर्ष बड़ा विशेष बन कर आया मनाये रक्षा बंधन का पर्व ।
मास्क लगाकर रहना भाई बहन कर रही निवेदन रक्षा बंधन का पर्व ।
सेनेटाईजर साथ में रखना समाजिक दूरी तभी सफल रक्षा बंधन का पर्व ।
घर के पकवान बहन बनाये भाई खाए और मुस्काये रक्षाबंधन का पर्व ।
अपने कर्तव्यों का पालन करना है देश की सेवा रक्षा बंधन का पर्व ।
लॉक डाऊन में राखी न बाँध पाये तो नाराज़ न भाई रक्षाबंधन का पर्व।
कोरोना महामारी मिटाने बना भाई कोरोना योद्धा रक्षा बंधन का पर्व ।
करे दुआयें नजर उतारे जीवन हो खुशियो से भरा रक्षा बंधन का पर्व ।
रोचना तिलक आरती उतारे बहन उपहार मिले रक्षा बंधन का पर्व ।
जुग जुग जीये मोरा भैया कामना करे   सबकी कृपा हो रक्षा बंधन का पर्व ।
भाई की कलाई में" रश्मि" ने प्यार की रेशम की डोर बाँधा रक्षाबंधन का पर्व
बहना हुई  सौभग्यशाली भैया मिला गौरवशाली रक्षाबंधन का पर्व ।
शुभ कलाई ,शुभ राखी शुभ घड़ी आई सब मनाये रक्षाबंधन का पर्व ।

              डॉ. रश्मि शुक्ला
                प्रयागराज
                उत्तर प्रदेश

"सावन आया... न तन भीगा, न मन भरा" :- डॉ. कुसुम पांडेय

आधा अधूरा मानसून आ गया लेकिन मदमस्त झूमता सावन नहीं आया। न तन भीगा न मन नहाया, न मिट्टी की सोंधी खुशबू फूटी न मोर नाचे ना कोयल की कू कू सुनाई दी। कजरी और राग मल्हार भी बस यूट्यूब पर ही सुनाई दिए।
 इस बार तो बहू बेटियां भी मायके नहीं जा पाई  बस पिया की दो टकियो  की नौकरी पर ही आफत आई तो बोलो सखी कैसे मनाए सावन???

सावन संयम तोड़ता है। बादलों तक में संयम नहीं रहता, कभी भी बरस पड़ते हैं लेकिन वह भी कुछ दिन से बहका रहे हैं। नदियाँ  जरूर उफनने लगती है। बांध तोड़ बहती हैं। हां प्रकृति तो अपने सौंदर्य के चरम पर है। उसका सोलह सिंगार दिखता है। अंतहीन हरियाली दिखती है," रिमझिम रिमझिम आई सावन की बहार रे"

सावनी फुहार प्रेमी जोड़ों को प्रेम रस में भिगोती है। मन की नदियां बांध लांघ बहती हैं। सखियों संग झूला कजरी, नाच गाने का माहौल रहता है। घर घर से गुलगुले, मालपुए और पकौड़ियों की खुशबू आती है।
 मान मनुहार का भी सावन आता है। इस कजरी में--- तुम को आने में तुमको बुलाने में कई सावन बरस गए साजना"

आयुर्वेद भी मानता है कि सावन में मनुष्य के भीतर रस संचार ज्यादा होता है। साधु संत भी इस दौरान समाज से कटकर चौमासा मनाते थे। सावन माह में शिव पूजा का विशेष महत्व है। सावन प्रकृति और मनुष्य के रिश्तो को समझने और उसके निकट जाने का भरपूर मौका भी देता है।

लेकिन दुख है कि अब पहले जैसा सावन नहीं आता बारिश की टपकती बूंदों की आवाज जो मन को आनंदित कर देती है, कागज की कश्ती भी  अब तरसती है बारिश के पानी के लिए। हां अब कागज की नाव चलाने वाले बच्चे भी नहीं हैं। अब वह सब पुरानी बातें लगती हैं।

धार्मिक लिहाज से भी यह महीना उत्तम माना जाता है। सावन में ही समुद्र मंथन हुआ था। शिवजी ने इसी महीने में विषपान किया था, इसीलिए यह पूरा माह  भोले बाबा को समर्पित है।

अबकी मानसून धोखा दे गया। बादल ने समूचे मौसम विभाग को छकाया है।उसे झूठा  साबित कर दिया। वो लहरेदार बारिश को मन तरस रहा है। बादल आए तो लेकिन दबे पाव वापस लौट गए।

वैसे भी इस बार तो सावन को कोरोना ने  डस लिया है। कोरोना  का असर साफ दिख रहा है। शारीरिक दूरी और सावन नहीं---- यह तो महीना ही सखियों संग हंसी ठिठोली का है। पर अभी कुछ किया भी नहीं जा सकता है ।

वैसे भी अब सावन तो आता है पर मन में उमंग नहीं भरता क्योंकि मिट्टी की खुशबू को मन तरसता है। पेड़ों पर पड़े झूलों को याद करता है। कजरी की हंसी ठिठोली ढूंढता है। जहां रिश्तो में नोकझोंक के साथ प्यार और मनुहार भी हुआ करता था। कोई दिखावा नहीं होता था। सभी रिश्ते सामाजिकता और व्यावहारिकता से भरे रहते थे।

पर कोई बात नहीं,इस  आशा के साथ कि अगला सावन बहुत उत्साह पूर्ण होगा और पुराने दिन फिर से वापस आएंगे, तो चलिए हम कोरोना महामारी
 का ध्यान रखते हुए बचाव के नियमों का पालन करते हैं। जिससे इस महामारी से बचा जा सके क्योंकि सिर्फ सरकारी प्रयासों और डॉक्टरों के ऊपर ही सारी जिम्मेदारी डाल देना बिल्कुल भी उचित नहीं होगा।

तीज त्योहार अब इस इस साल घर पर ही मनाना है। मन को मयूर बनाकर नचाना है। जो है, जैसा है, उसी रूप में मन को खुश करते हुए बचा हुआ सावन  मनाना है।

डॉ. कुसुम पांडे
वरिष्ठ समाजसेवी, अधिवक्ता एवं लेखिका

राष्ट्रीय पत्रकार आयोग का भी गठन करें सरकार:- शास्त्री

ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार आचार्य श्रीकांत शास्त्री जी ने सरकार से मांग किया है कि जिस प्रकार से देश मे अन्य विधा के लोगों की सुविधाओं के लिए बने आयोग कार्य कर रहे हैं उसी प्रकार से पत्रकारों के लिए भी राष्ट्रीय पत्रकार आयोग (नेशनल जर्नलिस्ट कमीशन) का भी गठन होना चाहिए। जिससे अन्य आयोगों द्वारा लाभ पा रहे लोगो की भांति पत्रकारों को भी सुरक्षा आदि सुचारू रूप से मिल सके।

श्री शास्त्री जी ने कहा कि पत्रकारों पर बढ़ते हमले एवं फर्जी मुकदमे को दृष्टिगत रखते हुए सरकार को जल्द राष्ट्रीय पत्रकार आयोग एवं पत्रकार सुरक्षा कानूननेशनल जर्नलिस्ट रजिस्टर बनाना चाहिए,  इसके साथ ही शास्त्री जी ने P.C.I का अधिकार बढ़ाने और इलैक्ट्रानिक मीडिया को दायरे में लाने के लिए एवं मीडिया काउंसिल  बनाने की भी बात कही,  पत्रकारों की हत्या एवं उनके ऊपर हो रहे हमले व फर्जी मुकदमो को रोकने के लिए भारत सरकार एवं देश की राज्य सरकारे तत्काल प्रभावशाली दिशा निर्देश जारी करें।

देश के विभिन्न आयोग अपने अपने निर्धारित कार्य क्षेत्रों  के तहत देशभर में कार्य कर रहे हैं और इनसे संबंधित लोग लाभान्वित भी हो रहे हैं लेकिन बहुत खेद व अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि पत्रकारों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है? शास्त्री जी ने सरकार से पुनः मांग करते हुए कहां है कि उपरोक्त की भांति राष्ट्रीय पत्रकार आयोग का भी गठन किया जाए जिससे पत्रकारों को उनकी सुरक्षा आदि सुविधाएं मिल सके और पत्रकारों का कानूनी तौर पर परिभाषा भी तय हो सके।

साथ ही श्री शास्त्री जी ने यह भी कहा कि इसी के साथ देश में नेशनल जर्नलिस्ट रजिस्टर, मीडिया काउंसिल एवं पत्रकार सुरक्षा कानून भी तैयार हो जाएगा। इससे यह लाभ होगा कि सरकारो द्वारा पत्रकारों के लिए चलाई गई कोई भी योजना पत्रकारों को नियम कानून के तहत मिल सकेगी। नहीं तो पत्रकारो को सही सुविधा मिलना बहुत  कठिन हो जाएगा। पत्रकारों के लिए बने नियम कानून को कड़ाई से लागू होने के लिए बात कही, जिससे देश में संविधान रक्षकों, कलम के सिपाहियों, राष्ट्रप्रेमियों को सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों को जनता तक एवं जनता की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने में किसी भी प्रकार की कठिनाई न हो।

आँल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा भारत सरकार एवं देश के सभी राज्य सरकारों से बराबर पत्रकारों के हितो एवं समस्याओं व पत्रकारों के उत्पीड़न एवं उनके ऊपर हो रहे फर्जी मुकदमे व उनकी हत्या से संबंधित हो, चाहे कोरोना काल मे पत्रकारों के संकट का हो, P.C.I. के चुनाव कराने, पत्रकार एमएलसी का कोटा, नेशनल जर्नलिस्ट रजिस्टर बनाने की मांग हो, मीडिया काउंसिल एवं पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने के लिए एसोसिएशन द्वारा प्रार्थना पत्र जरिये रजिस्ट्री के माध्यम से एवं देश के हजारों हजार सम्मानित अखबारो मे पत्रकारों की समस्याओं को प्रकाशन के माध्यम से व सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म के माध्यम से उठाया जा रहा है।

"बस्ते का बोझ कम--- एक अच्छी शुरुआत"



कुछ दिन पहले ही सीबीएसई बोर्ड ने अपने पाठ्यक्रम में 30% की कटौती की है और पिछले हफ्ते ही भारत के सबसे बड़े बोर्ड यूपी बोर्ड ने भी पाठ्यक्रम कम करने की घोषणा की है जो कि शिक्षा क्षेत्र में एक बहुत अच्छी खबर है।   
हमेशा कहा जाता है कि सुनहरे भविष्य का रास्ता तो स्कूलों से निकलकर जाता है और किसी भी देश का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी शिक्षा की गुणवत्ता किस स्तर की है। उससे बच्चों को वास्तव में कितना कौशल सीखने को मिल रहा है और शिक्षा की व्यवस्था उचित ढंग से हो रही है।

लेकिन बहुत सालों से चली आ रही है शिक्षा व्यवस्था इस महामारी के चलते असमंजस में पड़ गई है। इस कोरोना  महामारी ने पूरे विश्व में 200 करोड़ बच्चों की शिक्षा को प्रभावित किया है। कभी सुनने में नहीं आया था कि बोर्ड की परीक्षा ना हो पाई  हों लेकिन कोरोना काल में सच में ऐसा हो ही गया है। अभी आगे की स्थिति भी बहुत स्पष्ट नहीं है।

स्कूल कब खोले जाएं??? क्या बच्चों को स्कूल भेजा जाए??? बच्चे स्कूल में कितने सुरक्षित हैं??? आज बहुत सारे ऐसे प्रश्न हैं  जिससे अभिभावक, स्कूल प्रशासन दोनों ही परेशान हैं और दोनों की घबराहट उचित भी है क्योंकि बच्चों को खतरे में तो कोई भी नहीं डालना चाहेगा।

बच्चे स्कूल नहीं जा पाए तो स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई शुरू करवा दिया लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई की भी अपनी सीमाएं हैं। हां यह जरूर है कि खाली बैठने से यह विकल्प अच्छा ही है और सामान्य परिस्थितियों में भी ऑनलाइन शिक्षा ने  अपना स्थान बना लिया है और इसका सकारात्मक उपयोग बड़े से लेकर छोटे बच्चों तक सभी के साथ हो रहा है और आगे भी होता ही रहेगा।

इस समय की सबसे बड़ी समस्या है 2020- 2021 सत्र के लिए बच्चे किस प्रकार से तैयार किए जाएं। अनिश्चय की स्थिति से कैसे बाहर निकाला जाए?? ऐसे में सीबीएसई बोर्ड ने पाठ्यक्रम में 30% भाग को अध्यापन और मूल्यांकन से बाहर कर दिया है। इस निर्णय से स्कूल के बच्चों में एक नए उत्साह और प्रसन्नता की लहर दौड़ गई है।

यूपी बोर्ड ने भी पाठ्यक्रम कम करने की घोषणा कर दी है और उम्मीद है कि सभी राज्यों के बोर्ड भी जरूर ऐसा फैसला करेंगे।

बस्ते का बोझ पिछले 30 वर्षों से चर्चा का विषय रहा है। जब हमारे बच्चे छोटे थे तो भी लगता था कि कैसे अपने वजन से ज्यादा का बैग पीठ पर लादे हैं और बहुत सारे अध्याय तो स्कूल में पढ़ाये भी नहीं जाते थे, बस मोटी मोटी किताबें और मजदूरों जैसे ढोते बच्चे।

इस समय देश में स्कूली शिक्षा में 2005 में बनाए गए पाठ्यक्रम और उसके अनुसार बनी पाठ्यपुस्तक से ही चल रही हैं, लेकिन यह सही नहीं है। सजग और सतर्क देशों में पाठ्यक्रम और पुस्तके हर 5 वर्ष में बदली जाती हैं और आज के इस दौर में इसकी महत्ता सबको समझ आ रही है।

हमारे देश में प्राचीन काल में गुरुकुल शिक्षा पद्धति थी। जिसमें सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं वरन्  व्यक्तित्व निर्माण पर पूरा ध्यान दिया जाता था। जो जिस गुण में निपुण हो उसी के अनुरूप उसको अवसर मिलता था और आज के समय में भी कौशल शिक्षा का महत्व ही दिखाई पड़ रहा है।

ऐसे में बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए, शिक्षा को लाभप्रद बनाने के लिए उसको बोझ ना बना कर अपितु रुझान पैदा किया जाए जिससे  इस गला काट प्रतिस्पर्धा से बच्चे थोड़ा राहत पा सकें।

शिक्षा का बोझ कम होने से बच्चों को अपनी रूचि के अनुसार कार्य करने का भी समय मिल सकेगा जिससे उनका भविष्य सुनहरा होगा और अभिभावकों को भी सुकून मिलेगा।
धन्यवाद

डॉ. कुसुम पांडेय
वरिष्ठ समाजसेवी अधिवक्ता एवं लेखिका

बार काउंसिल के तर्ज पर, प्रेस काउंसिल भी कराए चुनाव:- शास्त्री

ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार आचार्य श्रीकांत शास्त्री जी ने सरकार से मांग किया है कि जिस प्रकार से देश मे बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा देश, प्रदेश, जिला व तहसील स्तर पर बाकायदे चुनाव कराया जाता है, उसी प्रकार से प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भी चुनाव कराए जाने की व्यवस्था एवं अधिकार दिया जाना चाहिए। जिससे प्रेस काउंसिल भी पत्रकारों का चुनाव करा सके। डाक्टरों व अधिवक्ताओं के लिए उनके-उनके काउंसिल अपने-अपने स्तर से देश भर में बाकायदे चुनाव कराती है और निर्वाचित पदाधिकारी देश, प्रदेश एवं जिला स्तर पर अपने विधा के लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए कार्य करते हैं, लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि पत्रकारों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है?

श्री शास्त्री जी ने भारत सरकार से मांग करते हुए कहा है कि उपरोक्त की भांति P.C.I. को संसाधन सहित अधिकार जारी करें जिससे प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया भी पत्रकारों को अधिकार दे सके।  जिस प्रकार से देश की उपरोक्त संस्थाएं अपने विधा के लोगों का चुनाव कराती है उसी प्रकार से प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया भी पत्रकारों के लिए देश और राज्य में चुनाव संपन्न कराएं, इससे यह फायदा होगा कि जिस प्रकार से अधिवक्ताओं, डॉक्टरों आदि की समस्याओं के निदान हेतु उनके उनके विधा के लोग कार्य करते हैं उसी प्रकार से पत्रकारों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से निर्वाचित लोग भी देश, प्रदेश व जिला स्तर पर कार्य कर सकेंगे। जिसके साथ ही पत्रकारों का कानूनी तौर पर परिभाषा भी तय हो सकेगा, अभी तक पत्रकार मात्र नाम का चौथा स्तम्भ है।

साथ ही श्री शास्त्री जी ने यह भी कहा कि इसी के साथ देश में नेशनल जर्नलिस्ट रजिस्टर भी तैयार हो जाएगा। इससे यह लाभ होगा कि सरकारो द्वारा पत्रकारों के लिए चलाई गई कल्याणकारी योजना पत्रकारों को सुचारु रुप से मिल पाएगी। नहीं तो पत्रकारो को वास्तविक सुविधा मिलना असंभव हो जाएगा। साथ ही पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बने नियम कानून भी कड़ाई से लागू हो जिससे देश के पत्रकार राष्ट्रहित न्यायपूर्ण बिना दबाव के अपना कार्य कर सके।

श्री शास्त्री जी ने यह भी कहा कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों की तरह  चौथे स्तंभ (पत्रकारो) को भी सारी सुविधाएं मिलनी चाहिए, इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि जिस प्रकार से देश के अन्य विधा के लोगो का एक कानून और एक नियम है उसी प्रकार से पत्रकारों का भी एक नियम, कानून होना चाहिए। देश का हर पत्रकार राष्ट्रहित सर्वोपरि रखते हुए अपने दायित्वों का पूरा का पूरा निर्वहन करता है, इसके बाद भी उसके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव रखना बहुत ही दुःखद है।

*गाजियाबाद की बेपरवाह पुलिस की लापरवाही से, गुंडो, लफंगो, मवालीयो, हिस्ट्रीशीटरो, कुख्यात अपराधियों ने एक कलम के सिपाही एवं संविधान के रक्षक वरिष्ठ पत्रकार को निरअपराध मौत के घाट उतार दिया।*


🖋"ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन"🗞 एवं मान्यता प्राप्त पत्रकार प्रयागराज मंडल परिवार ने मौत के शिकार हुए वरिष्ठ पत्रकार विक्रम जोशी के आश्रितों को उचित सहयोग राशि(₹ 50 लाख) दिए जाने तथा दोषी पुलिस एवं अपराधियों के खिलाफ कड़ी करवाई की मांग की है।

विगत 16 जुलाई को उपरोक्त बदमाशो ने वरिष्ठ पत्रकार की भांजी से विजय नगर में छेड छाड़ की। जानकारी मिलने पर तुरंत उसकी सूचना पुलिस को टेलीफोनिक माध्यम से एवं 17 जुलाई को लिखित प्रार्थना पत्र स्थानी एवं वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

20 जुलाई को रात जब अपनी बहन के यहां खाने पर गया, वहां घर के पास बदमाश मंडरा रहे थे तथा उन्होंने विक्रम जोशी को घुड़काया। वह अनसुनी करके अपनी बहन के घर चले गये। वहां से उसने पुलिस को फोन पर खतरे के प्रति आगह किया। पुलिस ने वहाँ आने असमर्थता व्यक्त कर दी।

खाना खाकर रात्रि करीब 10.30 बजे वापस लौट रहा था। बहिन के घर से करीब 200 मीटर दूर 3 बाइकों पर सवार बदमाशों ने उसको घेरकर बाइक गिरा दी और बेटियों के सामने ताबड़तोड़ पिटाई करके गोली मार दी।
बेटियों का हाल बेहाल था।
जिन बेटियों के सामने उनके पिता की पिटाई और गोली मारी गयी हो,उसकी अपार वेदना वही झेल रही थी। वें अभी तक डरी-सहमी है।

मरणासन्न पत्रकार विक्रम जोशी को शारदा हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया।
22 जुलाई को सुबह वरिष्ठ पत्रकार विक्रम जोशी के प्राण पखेरू उड़ गए। यदि समय रहते पुलिस कार्रवाई करती तो आज यह सब नही देखना पड़ता।
उसकी मौत की जिम्मेदार केवल-केवल पुलिस तन्त्र है।

परम पिता परमात्मा से प्रार्थना है मृतक की आत्मा को अपने चरणों मे स्थान देकर चिर शाँति और आश्रितों को यह अपार दुःख सहने की शक्ति प्रदान करे।
🙏🏻ॐ शाँति🙏🏻ॐ शाँति🙏🏻ॐ शाँति🙏🏻

आचार्य श्रीकांत शास्त्री
वरिष्ठ पत्रकार 
अध्यक्ष:- ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन

"मन, वचन और कर्म से करें --भू जल संरक्षण"


 देश के सबसे बड़े प्रदेश में भूगर्भ जल सप्ताह मनाया जा रहा है। इस अनमोल प्राकृतिक संसाधन को बचाने के लिए जल दिवस से लेकर ऐसे तमाम दिन तय किए गए हैं, लेकिन इन दिनों की सार्थकता तभी साबित होगी जब हम इसे जिम्मेदारी समझकर इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। तो आइए बारिश की बूंदों को सहेज कर हम अपने देश में एक बार फिर से जल देवता की परंपरा को आगे बढ़ाए।

जीवन और सृष्टि एक दूसरे के पूरक हैं पर इंसान इस बात से नादान बना हुआ है। धरती का सीना चीर कर जल का दोहन कर रहा है, और उसके संरक्षण पर अपनी आंखें फेर रहा है। "जल ही जीवन है, जल नहीं तो कल नहीं" फिर भी यदि आज हम नहीं जाग रहे हैं तो फिर कल  रोने का मतलब नहीं है, क्योंकि समय बीत जाने पर किसी बात का कोई मतलब नहीं रह जाता है। आदमी सिर्फ अपना सिर पीटता रह जाता है एक कहावत भी कही गई है कि "का बरखा जब कृषि सुखाने" अभी भी देर नहीं हुई है, जागो और लोगों को बताओ, उनके मन में पड़े पर्दे को हटाओ और जल संरक्षण के प्रति लोगों को  संवेदनशील बनाओ।
विश्व की प्रमुख सभ्यताओं से सबक लेना है कि जहां बिना जल सभ्यताएं ही समाप्त हो गई हैं। जल की कोई कीमत नहीं अदा कर सकता है।इस  अमूल्य निधि का तो संरक्षण ही एकमात्र उपाय है तो सिर्फ उपभोग नहीं वरन्  उसके संरक्षण पर भी ध्यान दें।  जल रूपी  अमूल्य निधि को बिना समय गवाएं बचा लेना है वरना पीढ़ियां नष्ट हो जाएंगी और हमारी नासमझी और गैर जिम्मेदारी की कीमत चुकाएगी।

आज सपने में जल देवता मुझे देख कर थोड़ा मुस्कुराए बोले क्यों क्या हुआ मुझे देख कर सकूंचा रही हो, चली थी मुझे बचाने पर लोगों के तानों से घबरा गई। अरे ये नादान मानव नहीं जान रहा है या फिर इस सच को नहीं मान रहा है। क्या जल बिन जीवन है, नहीं नहीं नहीं बिल्कुल नहीं,
 तेरी हर भूख प्यास, पूजा-पाठ हर जगह तो मेरी जरूरत है। मेरे  बिना तेरी सफाई कैसी,  मेरे बिना तेरी रसोई कैसी, मेरे बिना तेरे जीवन की आस भी नहीं मेरे बिना तेरे जीवन की सांस भी नहीं। भगीरथ गंगा को लाए धरती पर अपने पूर्वजों को तारने के लिए और तू भी माॅ, माॅ करके इस तथ्य को झुठला रहा है, गंगा को ही मैला बनाता जा रहा है,और यह नहीं समझ पा रहा है कि जल नहीं तो कुछ भी नहीं।

अभी जबकि कोरोना महामारी पूरे विश्व में छाई है, ऐसे में हमारे प्रदेश में जल सप्ताह मनाया जा रहा है। कोरोना, कोरोना, कोरोना  आज चारों तरफ बस एक ही नाम सुनाई दे रहा है, क्योंकि यह एक महामारी है तो सभी बहुत भयभीत हैं और जब इसके बचाव के तरीके बताए जाते हैं तो एक प्रमुख बात बताई जाती है कि हर 2 घंटे में साबुन पानी से अच्छी तरह से हाथ धोएं यहां तक कि  सैनिटाइजर से भी साबुन पानी को ज्यादा सही बताया जा रहा है, तो एक बात गहराई से सोचने की है कि अगर जल नहीं तो हम कोरोना  की लड़ाई कैसे लड़ते??? जी हां जिस तरह से हम जल के प्रति गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करते आ रहे हैं तो क्या नहीं लगता कि भविष्य में किसी और महामारी से लड़ने के लिए पहले हमें पानी की लड़ाई ना लड़नी पड़ जाए।

बचपन से "जल ही जीवन है" सुनते आ रहे हैं,  लेकिन फिर भी हम सब इसके संरक्षण के प्रति संवेदनशील नहीं हो पा रहे हैं। जबकि सभी को पता है "बिन पानी सब सून" सारा जीवन अमूल्य प्राकृतिक चीजों पर टिका है। हवा, पानी का शुद्ध होना बहुत जरूरी है। जिसने पानी तो हर काम के लिए जरूरी है। आपकी कोई भी सफाई इसके बिना नहीं पूरी हो सकती है।

 सोचिए कि साबुन तो भरा हो लेकिन हाथ धोने के लिए पानी ना हो तो??? ऐसे में सिर्फ हाथ धोने का ना सोचे बल्कि जल बचाने के भी तरीके सोचे और उस पर भी ईमानदारी से अमल करें, क्योंकि हमारी लापरवाही आगे चलकर एक और परेशानी ना पैदा कर दे।
 यह विचारणीय है "जल है तो कल है, जल नहीं तो कल नहीं" मैं स्वत इस विषय पर बहुत संवेदनशील हूं लेकिन जब मैं दूसरों से इस विषय पर चर्चा करती हूं तो वह गंदा सा मुंह बना लेते हैं। मेरे पीछे मुझे भला बुरा भी कहते हैं। यह बात मैं जानती हूं फिर भी अपने मन को समझाती हूँ कि आज रहीम दास जी का दोहा कितना सटीक बैठता है कि "रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून"
 सैकड़ों वर्ष पूर्व कही गई ये बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं।उतनी ही सार्थक हैं।

स्वस्थ जीवन का आधार स्वच्छ जल है लेकिन आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी संस्कृति की सारी अच्छी बातें भूलते जा रहे हैं, और अपनी प्लास्टिक बंद सोच पर इतरा रहे हैं, जबकि सही अर्थों में हम खुद को ही मूर्ख बना रहे हैं, बहुत समय शेष नहीं अगर ऐसे ही रहा बन जाएंगे हम भी अवशेष।यह बात  सही है कि आज नहीं तो कल इंसान अपने किए पर जरूर पछतायेगा। जल का दोहन छोड़ उसे फिर से पूजने लग जाएगा, अपनी बुद्धिमता को दर्शायेगा   यूं कहिए कि अपने प्रयास को सफल बनाने में लग जाएगा, जल ही जीवन है कि वैचारिकता   को हर कोई दिल से अपनाएगा।

माना कि भूजल का आपातकाल आ गया है, फिर भी अभी भी समाधान है। भू जल संरक्षण के लिए सप्ताह भर के कार्यक्रम ही काफी नहीं हैं, यह लोगों के व्यवहार का हिस्सा होना चाहिए।
भूजल सप्ताह शुरू हो चुका है लेकिन किसी भी सरकारी पहल में जब तक जनता का  सहयोग नहीं मिलता,  योजना की सफलता संदेह के घेरे में रहती है।

भूजल का अंधाधुंध दोहन करते रहते हैं लेकिन उसके बचाव के लिए कोई प्रयास नहीं करना चाहते हैं, केवल अपील से काम नहीं बनेगा बल्कि कुछ बाध्यकारी काम बनाना होगा। इसके लिए सरकार को जरूरी और सख्त कदम उठाने होंगे। अब यह जरूरी हो गया है कि गांव हो या शहर भवन निर्माण के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग के बिना नक्शे को पास न  किया जाए। सरकारी भवनों पर भी अनिवार्यता भू जल संरक्षण का प्रावधान किया जाए। गांवों में भी तालाबों को पुनर्जीवित किया जाए और जिन लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है उनसे  कब्जे को हटवा करके तालाबों का उचित रखरखाव किया जाए, जिससे कि बरसात का पानी बर्बाद ना होने पाए और लोगों के काम आ सके और धरती का जल स्तर ऊंचा होने में मदद हो सके।

 और यह सब लोगों के स्वभाव और कार्य व्यवहार का हिस्सा होना चाहिए तभी भूजल संरक्षण प्रभावी हो सकेगा।

वरिष्ठ समाजसेवी,अधिवक्ता एवं लेखिका
डॉ.कुसुम पांडेय

पत्रकारों की एकता बेहद जरूरी - श्रीकान्त शास्त्री

प्रयागराज!! जिस प्रकार से बार काउंसिल ऑफ इंडिया में  रजिस्ट्रेशन हो जाने के बाद अधिवक्ता पूरे देश में जहां से चाहे वहां से वकालत कर सकता है और वह स्थापित हो जाता है इसी प्रकार से मेडिकल काउंसिल में रजिस्ट्रेशन होने के बाद डॉक्टर को भी मान्यता मिल जाती है, लेकिन पत्रकारों के मामले उपरोक्त से एकदम उल्टा है वो ग्रामीण के है, ये तहसील के हैं, आप जिला के हैं, वो तो मंडल स्तर के है , वो प्रदेश मुख्यालय स्तर के हैं, वो देश स्तर के हैं ऐसी व्यवस्था बनाकर पत्रकारों को अलग- थलग करने की शुरू से ही एक बहुत बड़ी साजिश है।

अभी इसी तरह से एक और ट्रेंड चलाया जा रहा है कि वो बडे अखबार के हैं, आप छोटे अखबार के हैं, वो बड़े चैनल के हैं, आप छोटे चैनल के हैं, आप पोर्टल वाले हैं कह करके भेदभाव किया जा रहा है जब अधिवक्ताओं एवं डॉक्टरों की व्यवस्था एक है तो पत्रकारों में अनेक व्यवस्था कैसे इसको सही किया जाए उक्त बिगड़ी व्यवस्था को सही करवाने के लिए निरंतर प्रयासरत ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य श्रीकान्त शास्त्री कर रहे हैं उन्होंने पत्रकारों की बिभिन्न समस्याओं पर भी चर्चा करते हुए कहा कि पूरे देश के सभी प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े पत्रकारों को शासन प्रशासन की नि:शुल्क रेल बस सुबिधा, नि:शुल्क चिकित्सा आवास और पेंशन जैसी आवश्यक सुविधाये दिलाने हेतु एक देश व्यापी अभियान जल्द ही चलाया जाएगा।

जिसमे सभी प्रान्तों के पत्रकारों को सदस्यता अभियान से जोड़कर जिला स्तर पर पत्रकारों की सूची प्रशासन को मुहैया कराने तथा जो पत्रकार हिंसा में अपनी जान गंवाते है उन्हें शहीद का दर्जा मिले मृतक पत्रकार के परिजनों के परिवार के एक सदस्य को नौकरी की मांग सहित पत्रकारों के हित और कल्याण के लिए अनेक कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की जा रही है उन्होंने बताया की आल इण्डिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन में कोई भी पत्रकार सहभागिता निभा सकते हैं।

"शिक्षक एमएलसी की तरह, पत्रकार एमएलसी का भी घोषणा करे सरकार"


ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार आचार्य श्रीकांत शास्त्री जी ने केंद्र सरकार व राज्य सरकारो से मांग किया है कि जिस प्रकार से शिक्षकों के लिए शिक्षक एमएलसी कार्य करते हैं एवं डाक्टरों व अधिवक्ताओं के लिए मेडिकल काउंसिल और बार काउंसिल अपने स्तर से देश भर में बा कायदे चुनाव कराती है और निर्वाचित पदाधिकारी देश प्रदेश का जिला स्तर पर उनके समस्याओं के समाधान के लिए कार्य करते हैं, लेकिन पत्रकारों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है,

 श्री शास्त्री जी ने सरकारों से मांग करते हुए कहा है कि उपरोक्त की भांति निर्देश जारी करें कि जिस प्रकार से देश की उपरोक्त संस्थाएं देशभर में अपने विधा के लोगों का चुनाव कराती है उसी प्रकार से P.C.I. भी पत्रकारों के लिए देश और राज्य में चुनाव संपन्न कराएं, इससे यह फायदा होगा कि जिस प्रकार से अधिवक्ताओं, डॉक्टरों, शिक्षकों आदि की समस्याओं के निदान हेतु उनके उनके विधा के लोग कार्य करते हैं उसी प्रकार से पत्रकारों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से निर्वाचित लोग देश, प्रदेश व जिला स्तर पर कार्य करेंगे। ताकि कानूनी तौर पर पत्रकार की परिभाषा तय हो सके वर्तमान में पत्रकार केवल नाम का चौथा स्तम्भ रहा है ऐसे में पत्रकार की कोई परिभाषा नहीं है।

उपरोक्त के साथ ही श्री शास्त्री जी ने यह भी कहा कि इसी में नेशनल जर्नलिस्ट रजिस्टर भी तैयार हो जाएगा। इससे यह लाभ होगा कि सरकार द्वारा पत्रकारों के लिए चलाई गई कल्याणकारी योजना पत्रकारों को सुचारु रुप से मिल पाएगी। नहीं तो देश के पत्रकारो को वास्तविक सुविधा कभी भी नहीं मिल पाएगी। साथ ही पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बने कानून भी सख्ती से लागू हो जिससे देश के पत्रकार वास्तविक एवं राष्ट्रहित न्यायपूर्ण बिना दबाव के अपना कार्य कर सके।



श्री शास्त्री जी ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री बाजपेई एवं पूर्व उपराष्ट्रपति श्री शेखावत जी के द्वारा कही गई बातों का उदाहरण देते हुए कहा कि पत्रकार जनता एवं सरकार के आंख व मुंह के रूप में होते हैं वह जनता की समस्या सरकार तक एवं सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों को जनता तक पहुंचाते है।

शास्त्री जी ने यह भी कहा कि तीनों स्तंभों की तरह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ (पत्रकार) को भी पेंशन आदि की सुविधा दी जानी चाहिए और इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि जिस प्रकार से डॉक्टरों, अधिवक्ताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, पुलिस बलों आदि के लिए पूरे देश में एक कानून है और एक नियम है उसी प्रकार से पत्रकारों का भी एक नियम एक कानून होना चाहिए। देश का हर पत्रकार राष्ट्र हित सर्वोपरि रखते हुए अपने दायित्वों का पूरा का पूरा निर्वहन करता है। उसके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव रखना बहुत ही दुखद है। देश के हर पत्रकारों को भी सामुदायिक बीमा योजना के तहत शामिल किया जाना चाहिए।

"यादों के झरोखों से"

"अब के बरस भेज भैया को बाबुल, सावन में ली जो बुलाए रे।। लौटेंगी  जब मेरे बचपन की सखियां, दीजों संदेशा भेजाय रे।।"
आज जब इस गीत को सुनने बैठी तो बहुत सारी  पुरानी बातें याद आने लगीं, यूं कह सकते हैं कि यादों की बारात निकल पड़ी।

कोविड-19 में 25 मार्च से लॉकडाउन शुरू हुआ जो 5 चरणों में चला--- जिसमें लोगों से कहा गया घर में रहें स्वस्थ रहें क्योंकि कोरोना महामारी से बचाव का एक मुख्य उपाय शारीरिक दूरी भी बताया गया है। कोविड-19 ने एक वैश्विक महामारी बनकर पूरी दुनिया को भयभीत कर रखा है, ऐसा लगता है कि आखिर इस कोरोनावायरस से कब मुक्ति मिलेगी, लोग कहते थे कि गर्मी तक, फिर गर्मी भी बीत गई। अब नवंबर, दिसंबर तक और ज्योतिषियों का कहना है कि अगले साल मार्च तक सब ठीक हो जाएगा।

 अब यह सब समय बहुत लंबा लग रहा है और कभी कभी उबाऊ भी लगने लगता है। आखिर इतनेे सालों की आजादी, घूमने फिरने की स्वतंत्रता, बाहर खाने का फैशन, यहां तक की लोग इतने आजाद ख्याल हो गए थे कि कई घरों में तो घर में खाना बनाना भी बोझ  लगने लगा। बस जब मन चाहे फोन करो खाना हाजिर फिर परेशानी क्यों मोल ली जाए।

लेकिन कोरोना काल ने  हालात बदल दिए, जो कभी किचन का मुंह नहीं देखते थे, वह भी यूट्यूब से स्वादिष्ट खाना बनाना सीख गए।जान है तो जहान है और अपनों की जान तो सभी को प्यारी है।
अतीत की यादों में देखती हूं तो लगता है कैसे हमारी नानी, दादी माँ,बुआ,ताई,मौसी ऐ सारे ही जो रिश्ते थे, कैसे लंबे समय तक एक ही जगह पर आज की भाषा में कोरेनटाइन रहती थी। उस समय मायका और ससुराल बस दो ही जगह थी उनके पास आने जाने की। ना कोई हाट बाजार, ना कहीं होटल या फिल्म। कभी-कभी तो दो-तीन साल तक मायके नहीं जा पाती थी। कोई खास मौका पड़े तभी मायके जाने को मिलता था। मेरी मां ने भी बताया था कि एक बार वह 3 साल तक अपने मायके नहीं जा पाईं थीं। आखिर उन लोगों में कितना सब्र था। कैसे इतना संयम करके चलती थीं, फिर भी हर चीज में खुश रहती थीं ।

हाँ सावन के महीने में मायके जाने की योजना रहती थी, क्योंकि कजरी, झूला, सारे त्यौहार जैसे गुड़िया, राखी सावन में ही पङते थे और सखियां भी सावन में ही मायके में मिल पाती थी। फोन वगैहरा की तो व्यवस्था थी नहीं। लेकिन आजकल तो यह स्वरूप गांवों में भी कम ही दिखाई पड़ता है।

 मन यह सोचने पर विवश हो गया कि हम तो इतने दिनों में ही ऊब  गए और उन लोगों ने कैसे लंबे समय तक, सालों साल यह सब निभाया है। वह भी खुशी खुशी काम करते हुए और पारिवारिक रिश्तो को भी पूरी मधुरता से निभाते हुए।
 फिर आया हम लोगों का समय तो शुरू में  थोड़े नियम कायदे थे, लेकिन धीरे-धीरे एकांकी परिवार बढ़ते गए और साथ ही स्वतंत्रता भी बढ़ती गई।
घर घर में काम करने वाली बाई, खाना बनाने वाली और अगर नहीं आई तो होटल जिंदाबाद, लेकिन यह सब अब जल्दी संभव नहीं हो पाएगा।

तो नानी, दादी और मां का याद आना स्वाभाविक है, कहते हैं कि "नानी याद आ गई" हां उनके प्रति दिल श्रद्धा से भर उठा क्योंकि वह हमारी माताएं बहुत अच्छे संस्कार देकर गई हैं और उनको सहेजने की जिम्मेदारी हम लोगों को दिल से स्वीकार कर लेनी चाहिए। तीज त्यौहार घर में ही मनाएं लेकिन पूरे उत्साह के साथ रहें। 
"सावन का महीना पवन करे सोर" इस गाने को गुनगुनाते हुए कभी मन हो तो कजरी गुनगुनाए नहीं तो यूट्यूब पर भी सुन सकती हैं। बारिश होने पर घर में बना कर पकौड़ी, गुलगुले खाएं। बहन बेटियों को मायके बुला न सके तो कोई बात नहीं, यह समय की नजाकत है लेकिन कम से कम उनसे फोन से बात करके उनके विशेष होने का एहसास कराएं। जिससे बहू, बेटियों को भी अपना वाला सावन याद आए और पुरानी यादें ताजा हो जाएं। क्योंकि किसी को खुशी देने से बड़ा कोई उपहार नहीं होता और मायके से आया संदेशा उनके लिए सावन में सबसे बड़ा उपहार होगा।
धन्यवाद

वरिष्ठ समाजसेवी, अधिवक्ता एवं लेखिका
डॉ. कुसुम पांडेय

*गुरु बिन ज्ञान नहीं*

बिन गुरु ज्ञान कहां से पाऊं दीजो दान हरि गुण गांऊ---- 

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। इसी दिन से 4 महीने तक साधु संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
 हिंदू धर्म में गुरुओं को विशेष स्थान प्राप्त है।
कबीर दास जी ने कहा है "गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए" क्योंकि गुरु हमें अज्ञान के अंधेरे से निकालकर उजाले की ओर ले जाते हैं।
 इस बार गुरु पूर्णिमा 5 जुलाई को पड़ रही है। महर्षि वेदव्यास प्रथम विद्वान थे जिन्होंने सनातन धर्म के चारों वेदों की व्याख्या की थी, इसीलिए गुरु पूर्णिमा को वेदव्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
गुरु का अर्थ है -- अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता  है। भारत के बहुत से संप्रदाय तो केवल गुरु वाणी के आधार पर ही कायम हैं।गुरु का कार्य नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं को हल करना भी है।

गुरु वशिष्ट से भला कौन परिचित नहीं है जिन की सलाह के बिना राजा दशरथ और राजा राम के दरबार में कोई काम नहीं होता था। देश पर राजनीतिक विपदा आने पर गुरु ने देश को उचित सलाह देकर विपदा से उभारा, गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।

गुरु को ईश्वर के विभिन्न रूपों ब्रह्म, विष्णु, महेश के रूप में भी स्वीकार किया गया है। कबीरदास जी कहते हैं "हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर"।
जैसे सूर्य के ताप से तपती भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

भारत में कई श्रेष्ठ गुरु हुए हैं जिनके बारे में मान्यता है कि स्वयं देवता एवं दैत्य इन गुरुओं के पास समय समय पर शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते रहे हैं।

महर्षि वेदव्यास जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे और सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत की रचना की थी।

महर्षि बाल्मीकि जिनको आदि कवि भी कहा गया है और इन्होंने रामायण की रचना की थी।

महर्षि परशुराम की गिनती प्राचीन भारत के महान योद्धा और गुरुओं  में होती है।

गुरु द्रोणाचार्य की गिनती महान धनुर्धरो में होती है आप कौरवों और पांडवों के गुरु थे।

महर्षि विश्वामित्र सनातन धर्म के महान ग्रंथों में महर्षि विश्वामित्र की सबसे ज्यादा चर्चा मिलती है।
महर्षि विश्वामित्र ने श्री राम और लक्ष्मण को कई अस्त्र शस्त्रों का ज्ञान दिया था।

गुरु सांदीपनि भगवान श्री कृष्ण के गुरु थे

देव गुरु बृहस्पति देवताओं के भी गुरु हैं।

दैत्य गुरु शुक्राचार्य कहते हैं भगवान शिव ने इन्हें मृत संजीवनी विद्या का ज्ञान दिया था।

चाणक्य आचार्य विष्णुगुप्त यानी चाणक्य को कौन नहीं जानता जिन्होंने भारत को एक सूत्र में बांध दिया था। दुनिया के सबसे पहले राजनीतिक षड्यंत्र के रचयिता आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य जैसे साधारण युवक को 
 सिकंदर और धनानंद जैसे महान सम्राटों के सामने खड़ा कर कूटनीति युद्ध कराए।

 गुरु शंकराचार्य ने भारत के चारों कोने में चार मठों की स्थापना की। उन्होंने हिंदुओं के चार धामों का पुनर्निर्माण कराया और सभी तीर्थों को पुनर्जीवित किया।

स्वामी समर्थ रामदास छत्रपति शिवाजी के गुरु थे, उन्होंने ही देशभर के अखाड़ों का निर्माण किया था।

रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु थे जो कि भक्तों की श्रेणी में श्रेष्ठ माने गए हैं। मां काली के भक्त श्री परमहंस प्रेम मार्गी भक्ति के समर्थक थे।

इसी तरह से और भी बहुत सारे श्रेष्ठ गुरु हमारे सनातन धर्म में हुए हैं, कहा गया है कि गुरु का जीवन में होना विशेष मायने रखता है। गुरु हमारे लिए किसी मूल्यवान वस्तु से कम नहीं है। गुरु का होना जीवन का मार्ग बदलने की तरह होता है।
गुरु इस संसार का सबसे शक्तिशाली अंग होता है, कुछ भी सीखने के लिए हमें गुरु की जरूरत पड़ती है। हमें अलग-अलग चीजें सीखने के लिए अलग-अलग गुण वाले गुरुओं की जरूरत होती है, जैसे डॉक्टर और इंजीनियर, सिलाई, ड्राइवर, शिक्षा,वैद्य, योग सभी के गुरु की जरूरत होती है क्योंकि सही दिशा मिलने पर ही हम उस कला में विजय प्राप्त कर सकते हैं, बिना गुरु जीवन भर हाथ पांव मारते रहिए।
 
गुरु मिलने मात्र से नहीं वरन गुरु के प्रति हृदय से श्रद्धा होनी चाहिए, विश्वास होना चाहिए, समर्पण होना चाहिए तभी हम उस कार्य की  समस्त बारीकियां सीख सकते हैं।

गुरु हमेशा अपने शिष्य को आगे बढ़ता देखना चाहता है, अपने शिष्य संपूर्ण बनाने में समस्त ज्ञान उसके सामने उड़ेल देता है। गुरु चुनते समय हमें बहुत सावधानी पूर्वक विचार करना चाहिए।

कबीर दास जी ने कहा है--- सद्गुरु ऐसा कीजिए, लोभ मोह भ्रम नाही, दरिया से न्यारा रहे, दीसे दरिया माही।।

"गुरु कीजिए जाने के, पानी पीजै छानि,
  बिना विचारे गुरु करें परे  चौरसी खानि।।"

हमारे देश में गुरु-शिष्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस  शुद्ध परंपरा का पालन करने वाला ही सच्चा गुरु व शिष्य कहलायेगा,  और तभी जीवन सार्थक व गौरवशाली बन सकता है।
" यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान, सीस दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।

गुरु को भी अपनी मर्यादा पालन करते रहना चाहिए और शिष्य  गुरु के प्रति समर्पित होकर शिक्षा लेता है, तो वह एक महान लक्ष्य हासिल कर लेता है, "गुरु कुम्हार शिष् कुंभ है, गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट,अन्तर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट।"

भले ही आज के आधुनिक समय में गुरु-शिष्य का स्वरूप बदलता जा रहा है लेकिन इस सत्य को नहीं बुलाया जा सकता कि गुरु बिना ज्ञान नहीं मिल सकता। कई बार कोई राह चलता भी हमें सीख दे जाता है तो उस समय वह भी गुरु का काम करता है। समय भी जीवन का गुरु ही है यह भी बहुत कुछ सिखाता है। यहां तक कि रास्ते में पड़ा पत्थर जिससे ठोकर खाकर हम संभालना सीखते हैं उस समय वह भी गुरु होता है। एक गुरु हमारे अंदर ही होता है जो हमारे सही गलत का ज्ञान कराता है और वह हमारी अंतरात्मा।
 गुरु की महिमा और उसके रूप के स्वरूप के बारे में कबीर दास जी ने कहा है "गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान,  तीन लोक की संपदा, सो  गुरु दीन्ही दान।।"
धन्यवाद........
वरिष्ठ समाजसेवी, अधिवक्ता एवं लेखिका
 डॉ. कुसुम पांडेय

पत्रकारों का उत्पीड़न किए जाने के विरोध में पीएम एवं सीएम सहित आला अधिकारियों को लिखा पत्र। #पत्रकार

प्रयागराज। ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा पत्रकारों का उत्पीड़न किए जाने के विरोध में प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री सहित प्रदेश एवं देश के आला अधिकारियों को लिखा गया पत्र।

उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हो रहे उत्पीड़न एवं उनके ऊपर फर्जी मुकदमों दर्ज कराए जाने के विरोध ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा देश के प्रधानमंत्री, प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं प्रदेश एवं देश के आला अधिकारियों को भेजा गया पत्र।

जिसमें मिर्जापुर, बिजनौर, आजमगढ़, चुनार, सोनभद्र, गाजियाबाद, नोएडा, प्रयागराज आदि पत्रकारों के मामलों में जांच करवाकर न्यायोचित कार्यवाई किये जाने की बात कही गयी है।

गौरतलब हो , विगत कुछ माह से उत्तर प्रदेश के अलग अलग शहरों में समाचार कवरेज के दौरान पत्रकारों का उत्पीड़न हो रहा है। संबंधित विभाग अथवा स्थानीय प्रशासन के निर्देश पर पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज हुए है अभी तक किसी भी मामले में उत्पीड़न करने वाले के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई और न ही पत्रकारों पर लिखे गए मुकदमें को वापस लिया गया है।

 उपरोक्त के संबंध में विरोध दर्ज कराते हुए अनुरोध किया है कि पत्रकारों पर हुए उत्पीड़न के मामलों की निष्पक्ष जांच कराते हुए कार्रवाई करें तथा पत्रकार को सुरक्षा प्रदान कराएं। जिन पत्रकारों पर अभी तक जो घटनाएं सामने आई है। उनमें मिर्जापुर में पत्रकार पवन जायसवाल पर मुकदमा दर्ज कराया गया, चुनार के पत्रकार केके सिंह पर जानलेवा हमला हुआ, बिजनौर में पत्रकार विशाल व राशिद पर मुकदमा दर्ज किया गया, आजमगढ़ में पत्रकार संतोष जायसवाल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया गया, आजमगढ़ में ही पीटीआई के पत्रकार सुधीर सिंह के खिलाफ भी मुकदमा लिखे जाने की कार्रवाई की गई है।

जिसको समाप्त करते हुए आवश्यक कार्यवाही की मांग की गई है ।



सहयोगी दलों के सहयोग से एनडीए तीसरी बार भी अपनी नैया पार लगाने की फिराक मे।

  आचार्य श्रीकान्त शास्त्री, वरिष्ठ पत्रकार  देश में आम चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक सरगर्मियां बड़ने लगी है और हर पार्टिया ‌अपनी ...