"मन, वचन और कर्म से करें --भू जल संरक्षण"


 देश के सबसे बड़े प्रदेश में भूगर्भ जल सप्ताह मनाया जा रहा है। इस अनमोल प्राकृतिक संसाधन को बचाने के लिए जल दिवस से लेकर ऐसे तमाम दिन तय किए गए हैं, लेकिन इन दिनों की सार्थकता तभी साबित होगी जब हम इसे जिम्मेदारी समझकर इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। तो आइए बारिश की बूंदों को सहेज कर हम अपने देश में एक बार फिर से जल देवता की परंपरा को आगे बढ़ाए।

जीवन और सृष्टि एक दूसरे के पूरक हैं पर इंसान इस बात से नादान बना हुआ है। धरती का सीना चीर कर जल का दोहन कर रहा है, और उसके संरक्षण पर अपनी आंखें फेर रहा है। "जल ही जीवन है, जल नहीं तो कल नहीं" फिर भी यदि आज हम नहीं जाग रहे हैं तो फिर कल  रोने का मतलब नहीं है, क्योंकि समय बीत जाने पर किसी बात का कोई मतलब नहीं रह जाता है। आदमी सिर्फ अपना सिर पीटता रह जाता है एक कहावत भी कही गई है कि "का बरखा जब कृषि सुखाने" अभी भी देर नहीं हुई है, जागो और लोगों को बताओ, उनके मन में पड़े पर्दे को हटाओ और जल संरक्षण के प्रति लोगों को  संवेदनशील बनाओ।
विश्व की प्रमुख सभ्यताओं से सबक लेना है कि जहां बिना जल सभ्यताएं ही समाप्त हो गई हैं। जल की कोई कीमत नहीं अदा कर सकता है।इस  अमूल्य निधि का तो संरक्षण ही एकमात्र उपाय है तो सिर्फ उपभोग नहीं वरन्  उसके संरक्षण पर भी ध्यान दें।  जल रूपी  अमूल्य निधि को बिना समय गवाएं बचा लेना है वरना पीढ़ियां नष्ट हो जाएंगी और हमारी नासमझी और गैर जिम्मेदारी की कीमत चुकाएगी।

आज सपने में जल देवता मुझे देख कर थोड़ा मुस्कुराए बोले क्यों क्या हुआ मुझे देख कर सकूंचा रही हो, चली थी मुझे बचाने पर लोगों के तानों से घबरा गई। अरे ये नादान मानव नहीं जान रहा है या फिर इस सच को नहीं मान रहा है। क्या जल बिन जीवन है, नहीं नहीं नहीं बिल्कुल नहीं,
 तेरी हर भूख प्यास, पूजा-पाठ हर जगह तो मेरी जरूरत है। मेरे  बिना तेरी सफाई कैसी,  मेरे बिना तेरी रसोई कैसी, मेरे बिना तेरे जीवन की आस भी नहीं मेरे बिना तेरे जीवन की सांस भी नहीं। भगीरथ गंगा को लाए धरती पर अपने पूर्वजों को तारने के लिए और तू भी माॅ, माॅ करके इस तथ्य को झुठला रहा है, गंगा को ही मैला बनाता जा रहा है,और यह नहीं समझ पा रहा है कि जल नहीं तो कुछ भी नहीं।

अभी जबकि कोरोना महामारी पूरे विश्व में छाई है, ऐसे में हमारे प्रदेश में जल सप्ताह मनाया जा रहा है। कोरोना, कोरोना, कोरोना  आज चारों तरफ बस एक ही नाम सुनाई दे रहा है, क्योंकि यह एक महामारी है तो सभी बहुत भयभीत हैं और जब इसके बचाव के तरीके बताए जाते हैं तो एक प्रमुख बात बताई जाती है कि हर 2 घंटे में साबुन पानी से अच्छी तरह से हाथ धोएं यहां तक कि  सैनिटाइजर से भी साबुन पानी को ज्यादा सही बताया जा रहा है, तो एक बात गहराई से सोचने की है कि अगर जल नहीं तो हम कोरोना  की लड़ाई कैसे लड़ते??? जी हां जिस तरह से हम जल के प्रति गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करते आ रहे हैं तो क्या नहीं लगता कि भविष्य में किसी और महामारी से लड़ने के लिए पहले हमें पानी की लड़ाई ना लड़नी पड़ जाए।

बचपन से "जल ही जीवन है" सुनते आ रहे हैं,  लेकिन फिर भी हम सब इसके संरक्षण के प्रति संवेदनशील नहीं हो पा रहे हैं। जबकि सभी को पता है "बिन पानी सब सून" सारा जीवन अमूल्य प्राकृतिक चीजों पर टिका है। हवा, पानी का शुद्ध होना बहुत जरूरी है। जिसने पानी तो हर काम के लिए जरूरी है। आपकी कोई भी सफाई इसके बिना नहीं पूरी हो सकती है।

 सोचिए कि साबुन तो भरा हो लेकिन हाथ धोने के लिए पानी ना हो तो??? ऐसे में सिर्फ हाथ धोने का ना सोचे बल्कि जल बचाने के भी तरीके सोचे और उस पर भी ईमानदारी से अमल करें, क्योंकि हमारी लापरवाही आगे चलकर एक और परेशानी ना पैदा कर दे।
 यह विचारणीय है "जल है तो कल है, जल नहीं तो कल नहीं" मैं स्वत इस विषय पर बहुत संवेदनशील हूं लेकिन जब मैं दूसरों से इस विषय पर चर्चा करती हूं तो वह गंदा सा मुंह बना लेते हैं। मेरे पीछे मुझे भला बुरा भी कहते हैं। यह बात मैं जानती हूं फिर भी अपने मन को समझाती हूँ कि आज रहीम दास जी का दोहा कितना सटीक बैठता है कि "रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून"
 सैकड़ों वर्ष पूर्व कही गई ये बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं।उतनी ही सार्थक हैं।

स्वस्थ जीवन का आधार स्वच्छ जल है लेकिन आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी संस्कृति की सारी अच्छी बातें भूलते जा रहे हैं, और अपनी प्लास्टिक बंद सोच पर इतरा रहे हैं, जबकि सही अर्थों में हम खुद को ही मूर्ख बना रहे हैं, बहुत समय शेष नहीं अगर ऐसे ही रहा बन जाएंगे हम भी अवशेष।यह बात  सही है कि आज नहीं तो कल इंसान अपने किए पर जरूर पछतायेगा। जल का दोहन छोड़ उसे फिर से पूजने लग जाएगा, अपनी बुद्धिमता को दर्शायेगा   यूं कहिए कि अपने प्रयास को सफल बनाने में लग जाएगा, जल ही जीवन है कि वैचारिकता   को हर कोई दिल से अपनाएगा।

माना कि भूजल का आपातकाल आ गया है, फिर भी अभी भी समाधान है। भू जल संरक्षण के लिए सप्ताह भर के कार्यक्रम ही काफी नहीं हैं, यह लोगों के व्यवहार का हिस्सा होना चाहिए।
भूजल सप्ताह शुरू हो चुका है लेकिन किसी भी सरकारी पहल में जब तक जनता का  सहयोग नहीं मिलता,  योजना की सफलता संदेह के घेरे में रहती है।

भूजल का अंधाधुंध दोहन करते रहते हैं लेकिन उसके बचाव के लिए कोई प्रयास नहीं करना चाहते हैं, केवल अपील से काम नहीं बनेगा बल्कि कुछ बाध्यकारी काम बनाना होगा। इसके लिए सरकार को जरूरी और सख्त कदम उठाने होंगे। अब यह जरूरी हो गया है कि गांव हो या शहर भवन निर्माण के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग के बिना नक्शे को पास न  किया जाए। सरकारी भवनों पर भी अनिवार्यता भू जल संरक्षण का प्रावधान किया जाए। गांवों में भी तालाबों को पुनर्जीवित किया जाए और जिन लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है उनसे  कब्जे को हटवा करके तालाबों का उचित रखरखाव किया जाए, जिससे कि बरसात का पानी बर्बाद ना होने पाए और लोगों के काम आ सके और धरती का जल स्तर ऊंचा होने में मदद हो सके।

 और यह सब लोगों के स्वभाव और कार्य व्यवहार का हिस्सा होना चाहिए तभी भूजल संरक्षण प्रभावी हो सकेगा।

वरिष्ठ समाजसेवी,अधिवक्ता एवं लेखिका
डॉ.कुसुम पांडेय

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