" लेकिन नहीं छूट रहा..."



इस तेज भागती - दौड़ती जिंदगी और 
ऑफिस से देर रात घर आने 
के रूटीन के चलते
वो भूल चुकी थी एक प्याली 
शाम की चाय का अहसास
अदरक, तुलसी, लोंग, इलाइची संग 
पानी में खौलती गर्माहट सा प्यार।

फिर उसके जीवन में वरदान बनकर  
आया ये मुआ लॉक डाउन
सोचा की वो लौटा लाएगी 
इस लॉक डाउन में 
एक प्याली चाय की चुस्की संग 
दोनों के बीच ठंडे हो चुके रिश्ते 
की गर्माहट सा प्यार।

लेकिन इस लॉक डाउन में उसने
बहुत करीब से जाना उसे 
वो जैसा दिखता, वैसा था नहीं  
वो चाय नहीं हर शाम ढूंढता नशा 
जो आखिर में ले जाएगा 
उसे मौत के घाट, ये जानता है वो भी। 

अब ये लॉक डाउन वरदान नहीं 
अभिशाप लगने लगा दोनों को
एक के सब खुलने लगे राज़
एक का टूटने लगा भ्रम।

वो सोचने लगी 
भ्रम ही सही, बना तो रहता... 
कि आज भी उसके सीने में धड़कती है वो 
आज भी उसकी एक आह पर 
ऑफिस से हांफता हुआ घर लौट आएगा वो 
आज भी उसकी सांसो में 
बसता है उसका ही एक नाम
लेकिन उसकी सांसों को तो 
मिल गया है अब एक दूसरा ही काम....

फ़िर धीरे-धीरे बढ़ने लगा 
ये मुआ लॉक डाउन 
उसी के साथ बढ़ने लगी 
उसकी नसों की हुड़क 
और उनके दिलों में 
कभी न खत्म होने वाली दूरियां।

फिर रही सही कसर पूरी कर दी 
लॉक डाउन में खुले इन ठेकों ने 
कि सभी नशेड़ी जाएं, जाकर बुझा लें 
अपनी नसों की कुलबुलाहट।

फिर भी उसने नहीं मानी हार 
हर शाम की तरह इस शाम भी उसने 
तुलसा, अदरक, लोंग, इलाइची, 
उन दिनों के प्यार की गर्माहट 
इन सबको मिला फिर से बनाई 
एक प्याली चाय....
सोचते हुए, शायद आज शाम से ही 
हो जाएगी शुरुआत प्यार के अहसास की
लेकिन उसके लड़खड़ाते कदमों ने 
उसकी इस उम्मीद को भी जाने दिया...

सोचा था इस लॉक डाउन में ही सही 
छूट जाएगी उसकी ये बुरी आदत
बन जाएगा ये घर मुक्तिधाम उसका 
लौट आएगी उसकी जिंदगी में भी 
वो शाम की एक कप 
चाय की प्याली की गर्माहट सा अहसास 
लेकिन उससे नहीं छूट पाई बोतल 
छूट गया तो सिर्फ और सिर्फ 
उन दोनों के बीच का बचा हुआ प्रेम 
और धीरे-धीरे छूटता जा रहा है 
उसके साथ का हर एक रिश्ता...
वेंटिलेटर पर पड़ी 
आखरी सांसें ले रही हैं 
रिश्तों की गर्माहटें 
जिन्हें वो किसी शाम उसके संग
अपने आंगन की देहरी पर बैठकर 
महसूस करना चाहती थी
चाय की एक प्याली संग गर्माहट सा अहसास...

सब कुछ तो छूटता जा रहा है 
इस लॉक डाउन में 
वो...
उनका प्यार....
हर अहसास...
बस नहीं छूट रहा तो
बोतल का साथ....
उसकी नसों की खुराक...
एक प्याली चाय की गर्माहट को छोड़ 
एक प्याली बोतल की हुड़क बार - बार।

डॉ0 संगीता शर्मा अधिकारी।
लेखिका - कवयित्री

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