"आंवला नवमी का महत्व"


आइए हम सब मिलकर आंवला नवमी का पूजन करें।

कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी या अक्षय नवमी भी कहा जाता है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से स्त्रियां सौभाग्य की प्राप्ति करती हैं। आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने से सौभाग्य की प्राप्ति और रोगों का नाश होता है। इस दिन किया गया सभी कार्य पुन्य देने वाला होता है। कोई भी शुभ काम जैसे दान, पूजा, भक्ति, सेवा जो भी इस दिन किया जाता है... उसका फल कई कई जन्मों तक प्राप्त होता है।

पद्म पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव जी का आंवले के पेड़ पर निवास होता है।
मां लक्ष्मी ने भी आंवले के वृक्ष का पूजन किया था। 

आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु का अति प्रिय है। आंवले के वृक्ष के स्मरण और पूजन से गोदान का फल मिलता है।

इस बार 23 नवंबर को आंवला नवमी का पर्व है। इस दिन सर्वप्रथम मां लक्ष्मी की आराधना की जाती है।

एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि आंवला नवमी से लेकर प्रबोधिनी एकादशी तक पूजन करना चाहिए और प्रबोधिन एकादशी के दिन से आंवले का सेवन करना चाहिए।जिस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा हो उस दिन उसमें से आंवले के फल नहीं तोड़ने चाहिए। 

यथा उपलब्ध पूजन सामग्री से यदि संभव हो तो आंवले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए और साथ ही इसकी  सात परिक्रमा भी करनी चाहिए।

आंवले में बहुत सारे औषधीय गुण भी हैं। आंवले में आयरन और विटामिन सी भरपूर होता है। आंवले का जूस रोज पीने से पाचन शक्ति सही रहती है। त्वचा में चमक आती है। आंखों और बालों के एवं त्वचा संबंधी रोगों के लिए आंवला अत्यंत लाभकारी होता है।

हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति इतनी विकसित और पर्यावरण प्रेमी रही है कि जब भी हम कोई व्रत-त्योहार या पर्व मनाते हैं तो उसके पीछे जितना धार्मिक  महत्व होता है उतना ही महत्व वैज्ञानिक और प्राकृतिक भी होता है। हमारे देश में हर ॠतु, फसल, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों सभी को प्रकृति मानकर पूजा जाता है।

अभी हाल ही में सूर्य षष्ठी का व्रत हुआ जो पूर्णता प्राकृतिक पूजा का ही स्वरूप है।

सही मायने में संसार की रचना भी पुरुष और प्रकृति के विशिष्ट संबंध को परिलक्षित करती है। आंवला प्राकृतिक रूप से औषधीय गुणों का भंडार है। इसीलिए देवी देवताओं ने इसके संरक्षण के लिए इस में वास करने का निश्चय किया। जिससे आंवले के वृक्ष को सुरक्षित रखा जा सके। 

आंवला औषधीय गुणों का प्रचुर स्रोत है, यही कारण है कि च्यवन ऋषि ने सबसे पहले आंवले से चवनप्राश बनाया था, जो जीवनदायिनी औषधि के रूप में होता है। च्यवनप्राश में वृद्ध को भी नवयुवक बनाने की शक्ति होती है, ऐसी मान्यता है।

तो अभी जबकि कोविड-19 का समय चल रहा है। प्राकृतिक चीजों पर हमारी निर्भरता बढ़ गई है, तो ऐसी स्थिति में हमें इन औषधीय गुणों वाले *आंवला देव की पूजा करना एवं उनका संरक्षण करना* अपने और अपनी आने वाली पीढ़ियों के हित में अत्यंत ही आवश्यक है। प्रकृति ने जो गुणों का खजाना हमको प्रदान किया है। अब बहुत ज़रूरी है कि हम सब मिलकर के उनका संरक्षण करें और अपनी आने वाली पीढ़ियों को उनके गुणों से अवगत कराएं तथा अपनी *प्राकृतिक संपदा के प्रति दयालु बने और जागरूक बने*।।

धन्यवाद
डॉ. कुसुम पांडेय
वरिष्ठ समाजसेवी अधिवक्ता एवं लेखिका

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