पत्रकार के हत्यारों को फांसी एवं पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता की घोषणा करें सरकार:- शास्त्री


ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार आचार्य श्रीकांत शास्त्री जी ने बलरामपुर मे पत्रकार राकेश सिंह व साथी के हत्यारों के मुकदमा को फास्ट ट्रैक कोर्ट में करने एवं पीड़ित परिवार को 50 लाख रुपए की आर्थिक सहायता व परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की सरकार से मांग करते हुए कहा है कि जिस प्रकार से पत्रकार व उसके साथी की जिंदा जलाकर निर्मम हत्या की गई है, वह बहुत ही दुखद है एवं चौथे स्तंभ को दबाने की कुत्सित प्रयास है, जो बर्दाश्त नही किया जाएगा।


साथ ही श्री शास्त्री जी ने यह भी कहा कि जिस प्रकार से देशभर में पत्रकारों की हो रही हत्या, उनके ऊपर हो रहे फर्जी मुकदमे एवं उनपर हो रहे उत्पीड़न व उनको बुनियादी सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है यह बहुत ही दुखद एवं चिंताजनक है। यह कृत्य सीधा-सीधा चौथे स्तंभ को दबाने की खड्यंत्रकारी साजिश है जो इस प्रकार के लोकतांत्रिक देश के लिए शुभ संकेत नहीं है।



*ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन* परिवार ने सरकार से मांग किया है कि पत्रकारों पर बढ़ते हमलों, हत्या, उत्पीड़न एवं फर्जी मुकदमो को रोकने के लिए तत्काल पत्रकार सुरक्षा कानून बनाया जाए और जिसे यूपी सहित पूरे देशभर में लागू किया जाए जिससे आए दिन हो रही पत्रकारों के प्रति जानलेवा हमले एवं हत्याओं को रोका जा सके।


बलरामपुर में हुई पत्रकार को जिंदा जलाए जाने की घटना से देशभर के पत्रकारों में रोष व्याप्त है। जिसके संबंध में एसोसिएशन परिवार की ओर से मा. प्रधानमंत्री, मा. मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के विभिन्न अधिकारियों को ईमेल, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से पत्र भेजकर हत्यारों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्यवाही, पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता व परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की मांग किया गया है।

"आंवला नवमी का महत्व"


आइए हम सब मिलकर आंवला नवमी का पूजन करें।

कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी या अक्षय नवमी भी कहा जाता है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से स्त्रियां सौभाग्य की प्राप्ति करती हैं। आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने से सौभाग्य की प्राप्ति और रोगों का नाश होता है। इस दिन किया गया सभी कार्य पुन्य देने वाला होता है। कोई भी शुभ काम जैसे दान, पूजा, भक्ति, सेवा जो भी इस दिन किया जाता है... उसका फल कई कई जन्मों तक प्राप्त होता है।

पद्म पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव जी का आंवले के पेड़ पर निवास होता है।
मां लक्ष्मी ने भी आंवले के वृक्ष का पूजन किया था। 

आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु का अति प्रिय है। आंवले के वृक्ष के स्मरण और पूजन से गोदान का फल मिलता है।

इस बार 23 नवंबर को आंवला नवमी का पर्व है। इस दिन सर्वप्रथम मां लक्ष्मी की आराधना की जाती है।

एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि आंवला नवमी से लेकर प्रबोधिनी एकादशी तक पूजन करना चाहिए और प्रबोधिन एकादशी के दिन से आंवले का सेवन करना चाहिए।जिस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा हो उस दिन उसमें से आंवले के फल नहीं तोड़ने चाहिए। 

यथा उपलब्ध पूजन सामग्री से यदि संभव हो तो आंवले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए और साथ ही इसकी  सात परिक्रमा भी करनी चाहिए।

आंवले में बहुत सारे औषधीय गुण भी हैं। आंवले में आयरन और विटामिन सी भरपूर होता है। आंवले का जूस रोज पीने से पाचन शक्ति सही रहती है। त्वचा में चमक आती है। आंखों और बालों के एवं त्वचा संबंधी रोगों के लिए आंवला अत्यंत लाभकारी होता है।

हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति इतनी विकसित और पर्यावरण प्रेमी रही है कि जब भी हम कोई व्रत-त्योहार या पर्व मनाते हैं तो उसके पीछे जितना धार्मिक  महत्व होता है उतना ही महत्व वैज्ञानिक और प्राकृतिक भी होता है। हमारे देश में हर ॠतु, फसल, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों सभी को प्रकृति मानकर पूजा जाता है।

अभी हाल ही में सूर्य षष्ठी का व्रत हुआ जो पूर्णता प्राकृतिक पूजा का ही स्वरूप है।

सही मायने में संसार की रचना भी पुरुष और प्रकृति के विशिष्ट संबंध को परिलक्षित करती है। आंवला प्राकृतिक रूप से औषधीय गुणों का भंडार है। इसीलिए देवी देवताओं ने इसके संरक्षण के लिए इस में वास करने का निश्चय किया। जिससे आंवले के वृक्ष को सुरक्षित रखा जा सके। 

आंवला औषधीय गुणों का प्रचुर स्रोत है, यही कारण है कि च्यवन ऋषि ने सबसे पहले आंवले से चवनप्राश बनाया था, जो जीवनदायिनी औषधि के रूप में होता है। च्यवनप्राश में वृद्ध को भी नवयुवक बनाने की शक्ति होती है, ऐसी मान्यता है।

तो अभी जबकि कोविड-19 का समय चल रहा है। प्राकृतिक चीजों पर हमारी निर्भरता बढ़ गई है, तो ऐसी स्थिति में हमें इन औषधीय गुणों वाले *आंवला देव की पूजा करना एवं उनका संरक्षण करना* अपने और अपनी आने वाली पीढ़ियों के हित में अत्यंत ही आवश्यक है। प्रकृति ने जो गुणों का खजाना हमको प्रदान किया है। अब बहुत ज़रूरी है कि हम सब मिलकर के उनका संरक्षण करें और अपनी आने वाली पीढ़ियों को उनके गुणों से अवगत कराएं तथा अपनी *प्राकृतिक संपदा के प्रति दयालु बने और जागरूक बने*।।

धन्यवाद
डॉ. कुसुम पांडेय
वरिष्ठ समाजसेवी अधिवक्ता एवं लेखिका

"मस्ती की पाठशाला" (Written By Dr. Kusum Pandey)

मस्ती की पाठशाला

वास्तव में क्या ऐसा संभव हो सकता है??? यह बात बार-बार मन पर एक प्रहार सा करती है। शिक्षा के नाम पर क्या मस्ती की पाठशाला चलाई जा सकती है??


आज के समय में तो यह विचार बहुत बेतुका सा लगता है क्योंकि अब तो बच्चा कुछ बोलना और समझना शुरू करें तभी से उसे ABCD रटाया जाने लगता है।

बड़े गर्व से कहा जाता है कि यह Eyes, Nose बता लेता है और साथ ही इसे मोबाइल के बिना चैन ही नहीं पड़ता तो लीजिए हमारे भोले भाले दयालु और उदार प्रकृति ने आज हमें ऐसी जगह ला खड़ा कर दिया है जहां सब कुछ ऑनलाइन हो रहा है। तो मोबाइल, कंप्यूटर लैपटॉप की महत्ता अत्यंत बढ़ गई है।


ऑनलाइन स्कूल चल रहे हैं। परीक्षाएं हो रही हैं और साथ ही बच्चों के स्वास्थ्य को एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।


अभी कुछ दिन पहले ही पढ़ा था कि ऑनलाइन क्लास करने से और लगातार एक जगह बैठे रहने से बच्चों में कितने मानसिक विकार पैदा हो रहे हैं और साथ ही उनकी आंखों के लिए नई समस्याएं जन्म ले रही हैं, तो ऐसे में बरबस गुजरा हुआ जमाना मतलब हमारी उम्र वालों का जमाना याद आता है जहां पढ़ाई कभी समस्या नहीं थी। 

पढ़ाई के साथ साथ मस्ती की पाठशाला भी चलती थी।


वैसे तो हमारी भारतीय संस्कृति में गुरुकुल शिक्षा पद्धति थी, जहां पर व्यक्तित्व निर्माण की शिक्षा दी जाती थी। उस समय का दौर बीता तो धीरे-धीरे बहुत से बदलावों के  बाद आजाद भारत की गुलाम शिक्षा पद्धति ने स्थान ले लिया। जहां पर बस अंग्रेज बनाने की होड़ लग गई है। आज के दौर में अगर बच्चा अंग्रेजी स्कूल में नहीं पड़ता है तो यह एक शर्म की बात मानी जाती है।

सरकारी स्कूलों में भी अंग्रेजी माध्यम के अलग कक्षाएं चलती हैं। चलिए भाषा से किसी को कोई बैर रही है, परंतु बच्चों का शोषण भाषा के नाम पर किया जाना तो सर्वथा अनुचित है।


कोरोनावायरस में एक बड़ी समस्या आई कि बच्चों की पढ़ाई कैसे शुरू की जाए?? स्कूल जाना तो अभी संभव नहीं जान पड़ता तो ऑनलाइन। बच्चे  शुरू शुरू में तो बहुत खुश हुए लेकिन धीरे-धीरे उनकी स्वास्थ्य समस्याएं खासकर आंखों के लिए हानिकारक बन गई।


"जान है तो जहान है" का सिद्धांत कम से कम बच्चों के लिए तो होना ही चाहिए। यह ज्यादा उचित होता कि 1 साल की पढ़ाई बच्चों की रुचि के अनुसार कुछ क्रियात्मक कार्य करके करवाई जाती इससे ना तो अभिभावकों पर कोई आर्थिक बोझ पड़ता और ना ही बच्चों को एक ही स्थान पर बैठे-बैठे अपनी आंखों और दिमाग को ऑनलाइन करना पड़ता।


कोविड-19 में बहुत से देशों में 0 शिक्षा सत्र कर दिया गया जो कि एक सराहनीय कदम है, क्योंकि जान जोखिम में डालकर अनावश्यक आर्थिक और मानसिक तनाव की कोई आवश्यकता नहीं जान पड़ती है।


ऐसे में हमारे देश में कौन सी नौकरियों की बाढ़ आ गई है कि अगर बच्चे एक साल नहीं पढ़ेंगे तो सब नौकरियां व्यर्थ हो जाएंगी। जैसे हम सब बातों में अपने को पढ़ा-लिखा कहते हैं, तो उसी तरह बच्चों के भविष्य को लेकर भी हमें अपने अनुभव के आधार पर उनके उचित विकास के लिए अब रटन्त विद्या को छोड़कर वास्तव में मस्ती की पाठशाला पर जरूर ध्यान देना चाहिए। उनके अंदर के कौशल को निखारने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।

 यह बहुत ही अच्छा अवसर था जबकि बच्चे पढ़ाई के बोझ से बच कर अपने अंदर छिपी प्रतिभा पर भी ध्यान दे पाते।


यह एक तरह से देश हित में भी सार्थक कदम होता, क्योंकि इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में सिर्फ सरकारी, गैर सरकारी नौकरियां ही नहीं वरन व्यक्तिगत तौर पर अपने गुणों का विकास करना और उसके आधार पर अपनी जीविका के लिए आगे बढ़ने का विचार भी बहुत सहायक होता।


मस्ती की पाठशाला हर उम्र के लिए उतनी ही जरूरी है। अनावश्यक तनाव से कार्यक्षमता पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, फिर वह चाहे किसी भी उम्र का हो। अभी भी समय है जो बीत गया उससे अनुभव लेते हुए अपने देश के युवाओं और बच्चों के लिए एक स्वस्थ वातावरण को तैयार करना नितांत आवश्यक ही नहीं वरन् हम सबकी जिम्मेदारी भी है। 


देश का भविष्य इन्हीं बच्चों और युवाओं के हाथों में है, तो हमारे अनुभव का लाभ भी तो उनके लिए उतना ही जरूरी है क्योंकि अगर हमने तनाव रहित वातावरण का सुख पाया है तो हमारी इस पीढ़ी को और आगे आने वाली पीढ़ियों को भी वही सुख पाने का पूरा अधिकार है। 


अनुभव भी यही कहता है कि जब से सरकारी नौकरियों को ज्यादा वरीयता दी जाने लगी है तबसे बेरोजगारी लगातार बढ़ती ही जा रही है।

फिर क्यों ना अपनी प्रतिभा को ही अपने जीवन यापन का आधार बनाया जाए और यह तभी संभव है, जब इस गला काट प्रतिस्पर्धा से हटकर सभी स्व रोजगार की तरफ अपना ध्यान दें। कुछ पाने के लिए कुछ नया सोचना और उसे क्रियान्वित करना तो हर तरह से उचित ही जान पड़ता है।

धन्यवाद

डॉ. कुसुम पांडेय

वरिष्ठ अधिवक्ता समाजसेवी एवं लेखिका

सहयोगी दलों के सहयोग से एनडीए तीसरी बार भी अपनी नैया पार लगाने की फिराक मे।

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