वक्त के साथ ढल गये
हम तो घर में रुक गए
तुम भी घर में ही रुक जाओ
वक्त है अजीबोगरीब
तन्हा रहना है जरूरी
पर अपनों की सुरक्षा के लिए
ध्यान भी देना पड़ता है
शादी और शहनाई से भी
अब तो दूर ही रहना पड़ता है
आते हैं निमंत्रण तो अवश्य करो स्वीकार
पर जाना जरूरी नहीं है इसका भी करो विचार
यह कैसी आपदा आई है
नहीं... यह तो हमारी ही लापरवाही है
साल बीत गया पर हम सोते ही रहे
मास्क को मजाक ही समझते रहे
जो लोग नियमों का पालन कर रहे थे
बहुतेरे तो बस अपनी नजरों से उन्हें
घूर ही रहे थे
कैसा विचित्र भाव था
पर अब लगता है
वही तो सही था
हर बार जनता ने
खुद नासमझी दिखाई है
अपनी गलती दूसरे के सिर पर डालकर
अपनी जिम्मेदारी से फुर्सत पाई है
पैसे और अमीर बनने की इच्छा ही ने
सारी फजीहत मचाई है....
दवा चोरी, ऑक्सीजन चोरी
सफेदपोशों की हर तरह की चोरी जारी है
उनके लिए तो महामारी
कमाई का जरिया बन कर आई है
हाहाकार मचा कर मीडिया ने भी चारो ओर
भ्रम और डर फैलाया है
प्रेस ने भी कहां समझदारी भरा फर्ज निभाया है
बस जीवन बिताये जा रहे हैं कमियां निकालने में
अच्छाई देखने वाली नजरों पर
तो धूल से सना पर्दा चढ़ाया है
हर कोई बस आपदा को असर बना रहा है
झूठ से सना हुआ झूठा सच परोसा जा रहा है
बस जिम्मेदार लोगों को कोसा जा रहा है
आंकड़ों को भी झूठा साबित करने का आरोप लगाया जा रहा है
प्रेस और मीडिया भी अपने में मगन है
सिर्फ दिखावे के काम में संलग्न है
हाय हाय यही तो असली महामारी है
जिसमें गलती किसी और की
और आरोप किसी और पर जारी है
यह कैसी महामारी है यह कैसी महामारी है
आरोप-प्रत्यारोपो का खेल
हर तरफ जारी है
हर तरफ जारी है
समय का चक्र चिंतनीय दिख रहा है
व्यक्ति अपनी ही कमियों से
रसातल में गिर रहा है।
वरिष्ठ समाजसेवी, अधिवक्ता एवं लेखिका
डॉ कुसुम पांडेय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें