"सम्मान का शगुन देकर--- मनाएं रक्षाबंधन" By Dr. Kusum Pandey



सूत या रेशम का मात्र एक धागा भाई बहन को ना सिर्फ प्रेम और सम्मान के बंधनों में बांधता है बल्कि रक्षाबंधन का पर्व रक्षा की उदात्त भावना के जरिए आपसी प्रेम का एक भयमुक्त सुंदर संसार रचता है

भारत की धार्मिक चेतना और सांस्कृतिक चेतना दो ऐसे शिखर हैं जिनका मुकाबला संसार में कहीं नहीं हो सकता है। धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में भारत में जो भी पाया जाता है वह अद्भुत है।

रक्षाबंधन से जुड़ी अनेक कथाएं हैं उसमें पहली कथा है श्री कृष्ण और द्रौपदी की है। दूसरी कथा देवराज इंद्र, देव गुरु बृहस्पति वह इंद्राणी की भी है, कहा जाता है राक्षसों से युद्ध में जब इंद्र घबराकर देव गुरु बृहस्पति के पास आए तो इंद्राणी द्वारा निर्मित रक्षा सूत्र को देव गुरु ने इंद्र के हाथ पर बांधा था और देवराज इंद्र उसके बाद युद्ध में विजयी  हुए थे। ऐसी ही और भी बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं।

श्रावणी पर्व रक्षाबंधन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उपाकर्म अर्थात गुरु शिष्य के जुड़ाव के साथ अध्ययन अध्यापन की शुरुआत है। इसी दिन गुरु शिष्य को विद्या का दान देना आरंभ करते हैं और श्रावणी पर्व पूर्ण सार्थक होता है ।

हालांकि अब यह सब लगभग बंद हो चुका है।
पुराने दौर में घर की महिलाएं किसी ने सूती या  रेशमी कपड़े के एक हिस्से में कुछ चावल रख कर उसे सूत से बांधकर छोटी-छोटी पोटलिया बना दिया करती थी, फिर उन्हें हल्दी या केसर से रंग दिया जाता था और यही राखी बांधी जाती थी।
 लेकिन आज
 तो बाजार में बिकती बेहद खूबसूरत राखियों की लंबी लंबी दुकानें सज जाती हैं। यहां तक कि सोने चांदी आदि की राखियाँ भी मिलने लगी हैं।

कोरोनामहामारी के कारण इस बार मायके जाना तो कम ही हो पाएगा। एक दौर था कि जब ससुराल में स्त्रियां इंतजार करती थी कि कब सावन आए और वह मायके जा सकें। एक भावपूर्ण गीत सुना है,-- अम्मा मेरे बाबा को भेजो री, कि सावन आया सावन री। बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा रे, अम्मा मेरे भैया को भेजो री, बेटी तेरा भैया तो बाला रे  कि सावन आया सावन री।।

आज के समय में ऐसी विवशता तो नहीं है। लेकिन अब जब कोरोना  महामारी का समय है, तो बहुत सारे रास्ते बंद कर  रखे हैं। तब इस सावन में न जाने कितनी बेटियां हैं जिनके मन में पीड़ा है कि वह अपने भाइयों को राखी नहीं बांधी पाएंगी। तो लगता है कि सावन की नमी कई आंखों को शायद इस बार कुछ अधिक ही भिगो जाए।

वैसे मुझे लगता है कि रक्षा सूत्र का वास्तविक अर्थ भावनात्मक संबल है। रक्षाबंधन भावनाओं से जुड़ा पर्व है। महज रक्षा सूत्र बांधने से एक दूसरे की रक्षा का वादा क्या पूरा किया जा सकता है???? दिखावा इस पारंपरिक उत्सव को खोखला बना रहा है। दिखावे के चक्कर में हम कुछ ज्यादा ही उत्सव धर्मी हो गए हैं। प्रेम के इस पर्व में शान, शौकत दिखावे का कोई मतलब नहीं है। यदि भाई बहन एक दूसरे को भावनात्मक संरक्षण देते हैं तो स्नेह का बंधन ज्यादा मजबूत होता है।

हालांकि अब समय बदल गया है। हम स्त्रियों को अपनी सुरक्षा खुद करनी है। अपने स्वयं के भीतर ही शक्ति अर्जित करनी है कि हम अपनी वह दूसरों की भी सुरक्षा कर सकें। वैसे भी अब रक्षाबंधन का स्वरूप बदलना चाहिए। भाई बहन दोनों को एक दूसरे की सुरक्षा का ध्यान देना चाहिए।

जब से कानून बदले हैं और संपत्ति का अधिकार बहनों को मिलने लगा तो रिश्तो में एक तनाव दिखने लगा है। जबकि ज्यादातर लड़कियां अभी भी मायके से संपत्ति का बंटवारा नहीं चाहती हैं। वह तो सिर्फ अपना मायका जिंदा रखना चाहती हैं। लेकिन जितनी आसानी से कानून बनते हैं, उतनी आसानी से सामाजिक मान्यताएं नहीं बदलती हैं। यहां हर स्त्री को अपने भाई को बचाने की जरूरत पड़ती है। स्त्री अपना अधिकार भाई को दे देती है। लेकिन भाई को भी चाहिए कि घर का एक कोना तो अपनी बहन के लिए सुरक्षित रख दें ताकि वह कभी भी आए तो स्वाभिमान के साथ रह सके। और यही उसके स्वाभिमान का संरक्षण होगा। तोहफे देने से ज्यादा जरूरी प्यार व स्वाभिमान देना है।

पहले बहनों को संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जाता था। तो तीज-त्यौहारो के माध्यम से उन्हें उपहार स्वरूप थोड़ा-थोड़ा कुछ देते थे। जो कि एक बहुत स्वस्थ परंपरा थी। अब तो सब कुछ बराबरी का होता जा रहा है। भाई कुछ देता है तो बदले में बहन भी देती है।

लेकिन आज के समय को देखते हुए सबसे बड़ा संरक्षण का धागा तो शिक्षा का है। शिक्षा का सूत्र पहन कर दो बहने जीवन में कदम बढ़ाती हैं वह ना सिर्फ अपना बल्कि अपने भाइयों का भी मान बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं। कोई भी पर्व यदि आपसी प्रेम व्यवहार से होता है, तो वह ज्यादा अच्छा रहता है। सही मायने में दोनों ही एक दूसरे के लिए प्रतिबद्ध हो।

इसलिए अब से यह जरूरी संकल्प लें कि  आपसी प्यार ही सबसे बड़ा संबल होता है। जो कि भाई बहन दोनों के लिए जरूरी है। दिखावे की चीजों व बातों से बचकर इस बार प्यार व सम्मान का शगुन देकर रक्षाबंधन का पर्व मनाए।

इसके साथ ही एक जरूरी बात है कि इस बार रक्षाबंधन में हम बहने देसी का दम दिखा दें। स्वदेशी राखी का ही इस्तेमाल करना है। आत्मनिर्भर का संकल्प दोहराते हुए देश में बनी राखियों का ही प्रयोग करें और साथ ही कोरोनावायरस से बचाव के सभी नियमों का पालन करें।

तभी सही मायने में भाई बहन एक दूसरे की रक्षा कर सकेंगे। स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें तथा लोकल फॉर वोकल का पालन करते हुए स्वदेशी का स्वाभिमान के साथ प्रयोग करें।

एक बार फिर इस पावन पर्व रक्षाबंधन की आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं धन्यवाद

डा. कुसुम पांडेय 
वरिष्ठ समाजसेवी, अधिवक्ता एवं लेखिका

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें