"वृक्ष बिना - जीवन सूना"

वैसे तो वृक्ष को धरा का आभूषण कहा जाता है लेकिन हम सभी जानते हैं कि विगत कई वर्षों से वन क्षेत्र सिकुड़ते जा रहे हैं और वृक्षों की कटान बढी है और इसकी वजह से पर्यावरण का बुरी तरह से नुकसान हुआ है।
औद्योगिक और अन्य विकास गतिविधियों के कारण पर्यावरण खतरनाक रूप लेता जा रहा है। मानसून भी कभी कम, कभी ज्यादा होने से कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ की स्थिति बन जाती है। ऐसी समस्याओं के निराकरण का एकमात्र उपाय पौधारोपण और हरियाली को बढ़ावा देना ही है।
प्रदेश में जब से योगी सरकार आई है पौधारोपण का नया ही इतिहास बना रही है। पिछले साल 22 करोड़ पौधारोपण थे और इस साल जुलाई में 25 करोड़ पौधे रोपे जाने का लक्ष्य है। करीब 200 प्रजातियों के पौधे लगाने का भी विश्व रिकॉर्ड होगा। इस कार्य में सरकार पूरी निष्ठा से लगी हुई है।
 सबसे जरूरी बात को ध्यान में रखना चाहिए कि पहले तो अपनी जलवायु के अनुकूल पौधों को ही रोपित किया जाए क्योंकि पिछली बार भी देखा गया कि कई ऐसी प्रजातियों के पौधे लगा दिए गए जो सूख गए, तो इस तरह के पौधारोपण का कोई फायदा नहीं है।
कोरोनावायरस मे हमनेे   देखा कि जड़ी बूटियों और आयुर्वेदिक औषधियों का बहुत योगदान रहा है। तो ऐसे में हमें विशेष रुप से पीपल, नीम,पाकड़  आम, सहजन, ब्राह्ममी,  अश्वगंधा और भी तमाम उपयोगी पौधे लगाने हैं, जो हमारी जलवायु में वृक्ष का रूप ले सकें  और जीवन के लिए उपयोगी भी हों।

इससे आयुर्वेदिक दवाइयां आदि बनाने के लिए कच्चा माल भी आसानी से मिल जाएगा और एक तरह से लोकल फॉर वोकल भी होगा।

खबर यह भी है कि उत्तर प्रदेश में हाईवे के आसपास 800 किलोमीटर में औषधि मूलक पेड़ लगाए जाएंगे।यह तो बहुत अच्छी बात है इससे प्रदूषण भी कम होगा और साथ ही रोग फैलने की संभावना भी कम होगी, लेकिन इसके लिए जल संचयन की भी उतनी ही जरूरत है, जिससे पौधों को पर्याप्त पानी मिल सके।
पौधारोपण तो सरकार का अच्छा कदम है लेकिन पानी की कमी और उचित देखभाल ना होने से पौधे नष्ट हो जाते हैं इसलिए हो सके तो आसपास के गांव वालों को भी इससे जोड़ दिया जाए। वहां के सरपंच और वरिष्ठ नागरिक खुद उन पौधों की जिम्मेदारी लेकर उनकी देखभाल करें और सरकार उन को प्रोत्साहित करने के लिए सर्टिफिकेट या अन्य किसी तरीके से भी काम करें।
प्रकृति ने एक बार फिर यह सिखा दिया है कि अगर हम प्रकृति की रक्षा करेंगे तो वह भी हमारी रक्षा करती रहेगी। रोपें गए पौधे जीवित रहे और वृक्ष का रूप ले सकें इस बात पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, और यह कार्य बिना जन सहभागिता के संभव नहीं हो सकता है।
बच्चों को भी स्कूलों में खेती किसानी के साथ-साथ पर्यावरण और जल संचयन का उपयोगी ज्ञान देना आवश्यक है, क्योंकि यही बच्चे आगे चलकर देश का भविष्य बनते हैं।
इस तरह का पाठ्यक्रम फिर से शुरू किया जाना चाहिए। आखिर क्यों हमारे आसपास की नदी तालाब पेड़ पौधे सूख जाएं??? क्यों पशु पक्षी और मनुष्य त्राहि-त्राहि करें???? जबकि यह सब तो हमारे अपने हाथ में है कि हम प्रकृति को कितना संजो सकते हैं।

चाहे कोई गरीब हो या अमीर हो सभी को शुद्ध हवा, पानी की जरूरत है। ऐसे में पानी बचाना, भूगर्भ जल का संरक्षण करना, वर्षा का जल बचाने के लिए तालाब, बावडिया तैयार करना, पेड़ पौधों को बचाना, और उन सब की देखभाल करना, हम सभी की जिम्मेदारी है।
बूंद बूंद पानी, शुद्ध हवा और खिलखिलाती हरियाली को खरीदा नहीं जा सकता है, बस अपने थोड़े से प्रयास से सार्थक बनाया जा सकता है।
पौधारोपण सिर्फ अधिकारियों, कर्मचारियों के द्वारा महज खानापूर्ति ही नहीं बल्कि इस अभियान में आम नागरिकों की भूमिका को भी बढ़ावा देना जरूरी है, और इसके लिए वृक्षों पर मालिकाना हक और अत्यधिक जरूरत पर ही वृक्षों के कटान आदि के नियमों की नए सिरे से समीक्षा करनी चाहिए, तभी यह अभियान सफल होगा और सर्वत्र हरियाली ही हरियाली दिखाई देगी और धरती पेड़ों के आभूषण से सज जाएगी।

वरिष्ठ समाजसेवी, अधिवक्ता एवं लेखिका 
डॉ. कुसुम पांडेय 

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