कोरोनावायरस से उपजी महामारी कोविड-19 के असर की समीक्षा के दौरान प्रधानमंत्री जी ने यह सही कहा कि अगर अधिक मरीजों वाले राज्य कोरोना को हराने में सफल हो जाए तो हमारा देश जीत जाएगा।
लेकिन यह चिंताजनक है कि संक्रमण फैलते जाने के बाद भी तमाम लोग मास्क लगाने या शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करने से परहेज कर रहे हैं। यह सही मायने में एक किस्म की आपराधिक लापरवाही है।
यह जानते हुए कि इस महामारी का कोई सीधा इलाज नहीं है और इसका भी भरोसा नहीं है कि वैक्सीन कब आएगी?? बाजार आदि जगहों पर कितने ही लोग दिखते हैं जो ना तो मास्क लगाए होते हैं और ना ही शारीरिक दूरी बनाने में विश्वास करते हैं।
आखिर मास्क का सही प्रयोग और शारीरिक दूरी के नियम पालन के साथ साफ सफाई और सेहत का ध्यान रखना हर किसी की प्राथमिकता क्यों नहीं बन सकता????
क्या यह हर नागरिक की अपने और अपने देश के प्रति नैतिक और राष्ट्रीय जिम्मेदारी नहीं है???
सिर्फ सरकारी तंत्र और सरकारी डॉक्टरों के ऊपर सारी जिम्मेदारी डाल देना बिल्कुल भी उचित नहीं लगता है।
जब से कोरोना संक्रमण शुरू हुआ है। सरकारी सेवादारों का कोई लॉकडाउन नहीं हुआ और बाकी सेवादारो का तो काम कम हो गया लेकिन सरकारी डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों का काम तो लगातार बढ़ता ही जा रहा है। लगातार काम करते वह सब भी थक जाते होंगे इस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। आए दिन लोगों की शिकायतें ही बढ़ती जा रही हैं।
सरकार और जनता की अपेक्षाओं के बोझ तले सरकारी डॉक्टर पिस रहे हैं। कोई भी वायरस यह देखकर संक्रमण नहीं करता कि डॉक्टर को छोड़ देना है, फिर भी सरकारी डॉक्टर दिन रात एक किए हैं। उनकी सेहत के विषय में सरकार भी आंखें मूंदे बैठी है और सिर्फ आंखें दिखा रही है।
सरकार का सवाल है कि मरीज और मृत्युदर क्यों बढ़ रही है??? तो यह जवाब तो स्वयं सरकार और जनता के पास है। लॉकडाउन रहा हो या अनलॉक हो बहुत सारे लोग सरकारी गाइडलाइंस का पालन करने में अपनी बेइज्जती समझते हैं।
उन्हें सारी शिकायतें डॉक्टरों से रहती है। कुछ भी गलत हो तो सरकारी डॉक्टर जिम्मेदार हैं। वहीं प्राइवेट डॉक्टर जो जनसेवा का भाव भुलाकर इस समय भी मनमानी फीस वसूल रहे हैं और घर बैठे मजे भी कर रहे हैं।
क्या यही मानवता है?? क्या यही सफेद कोट वाले कोरोना योद्धाओं का सम्मान है?? डॉक्टर जान हथेली पर लेकर वायरस के खिलाफ जंग जीतने के लिए तैयार हैं और जान से भी हाथ धो रहे हैं साथ ही मानसिक और शारीरिक वेदना भी सह रहे हैं।
आंकड़े बताते हैं कि कोरोनावायरस के पाजिटिव मरीजों के बाद सेवादारों में सबसे ज्यादा डॉक्टरों की मृत्यु हो रही है। डॉक्टर वह भी सरकारी वाले----
बड़े-बड़े गैर सरकारी चिकित्सा संस्थान और वहां के डॉक्टर तो बहुत ही गैर जिम्मेदाराना व्यवहार का परिचय दे रहे हैं। एक तरफ तो तथाकथित व्यवसायिक चिकित्सा केंद्र मरीजों से मोटी रकम वसूल रहे हैं और दूसरी तरफ अपने यहां काम कर रहे डॉक्टरों को चार-पांच महीने से वेतन भी नहीं दे रहे हैं। और यदि उनके डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव निकल रहे हैं तो अस्पताल उन्हें कचरे की तरह बाहर फेंक रहे हैं, सही भी है काम निकल गया तो अब चर्चा क्यो????
धरती के भगवान को क्या यही सम्मान मिलना चाहिए?? क्या डॉक्टर विहीन समाज की कल्पना की जा सकती है??? नहीं तो फिर उनके प्रति सरकार और जनता दोनों को संवेदनशील होना पड़ेगा। डॉक्टर्स भी हमारी और आपकी तरह इंसान हैं तो उनके प्रति भी मानवता पूर्ण व्यवहार ही होना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि वह जी जान से काम भी करें और बदले में उन्हें दोषारोपण भी सहना पड़े। सभी देशवासी अपनी स्वयं की जिम्मेदारी का निर्वाह करें और यदि ऐसा होने लगे तो कोरोनावायरस के संक्रमण की रफ्तार को जल्द ही काबू में कर के जनजीवन को सामान्य किया जा सकता है।
साथ ही मरीजों से भी यह निवेदन है कि शिकायती लहजे का त्याग कर अपने आत्मबल को ऊंचा कर डॉक्टरों का पूर्णता सहयोग और सम्मान करते हुए कोरोना जंग को जीतने का संकल्प लें। एक दूसरे के सहयोग के बिना इस जंग में सफलता नहीं पाई जा सकती है। अस्पताल और डॉक्टरों की भी अपनी सीमाएं हैं।
मरीज इलाज कराने गए हैं तो उसको भी सुविधा भोगी रवैया त्यागना होगा क्योंकि डॉक्टर और अस्पताल उतना ही कर सकते हैं, जितना उनके पास साधन होगा।
बढ़ती मरीजों की संख्या को कम करने पर विशेष ध्यान देते हुए घर में रहें और सुरक्षित रहें का पालन करते हुए अपने डॉक्टरों को भी सुरक्षित बनाने में हम सब मिलकर सहयोग करें।
यदि डॉक्टर्स भी सिर्फ निंदा की परवाह करेंगे तो कुछ नहीं कर पाएंगे। तो हमें भी उनकी जान और उनका सम्मान बचा कर रखना है और धरती के भगवान का दिल से आभार व्यक्त करना है।
धन्यवाद......
वरिष्ठ समाजसेवी, अधिवक्ता एवं लेखिका
डॉ. कुसुम पांडे
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