*मन ही मन का सच्चा मीत* (By Dr. Kusum Pandey)

मानव चरित्र का सबसे प्रधान स्वरूप मन है। भगवान ने भी धरती पर अवतार लेकर लीला करने के लिए मन बनाया, क्योंकि ईश्वर तो निर्गुण होते हैं और भगवान ने जब मन बनाया तभी इस सांसारिक लीला में तल्लीन हो पाए।


मानव जीवन अमूल्य है लेकिन मनुष्य बहुत जल्दी हताश और निराश हो जाता है। इस भौतिकवादी युग में मनुष्य हर वस्तु जल्दी से जल्दी प्राप्त कर लेना चाहता है। इस चाहत के चलते उसे जब अभीष्ट की प्राप्ति नहीं हो पाती तो वह निराश हो जाता है और अपने अमूल्य जीवन तक को ही नष्ट करने की ठान लेता है। हमें सदैव यह मानकर चलना चाहिए कि *मन से बड़ा न कोय*

आजकल मानसिक स्वास्थ्य भी एक बहुत बड़ी समस्या है। कोविड-19 में मनुष्य के लिए मानसिक सेहत की चुनौती को और बढ़ा दिया है। हालांकि जितना ध्यान हम शरीर की बीमारियों को दूर करने के लिए करते हैं, उतना ही अनदेखी मन की सेहत के लिए करते हैं।

यह एक चेतावनी भी है कि यदि हम शरीर की तरह मन की सेहत को लेकर सजग नहीं हुए तो हमारी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यदि हमारे सब्र और संकल्प का बांध टूट रहा है तो याद रखें यह हमारी मनोदशा को और खराब कर सकती है।

ऐसी स्थिति में हमें यह सकारात्मक विचार लाने की जरूरत है, कि सिर्फ हम ही नहीं हैं और भी लोग किसी न किसी परेशानी को झेल रहे हैं। कोविड-19 से पहले भी इंसानी जीवन बहुत सी मनोवैज्ञानिक परेशानियों को झेल रहा था पर इस महामारी ने उसको और गंभीर बना दिया है। 


कोरोनावायरस को लेकर डर और अनिश्चितता मानसिक सेहत को और ज्यादा खराब करने में इंधन का काम कर सकती है।


इस समय ज्यादातर लोग भावनात्मक रूप से खुद को कमजोर महसूस कर रहे हैं। जरूरी है कि मन की परेशानियों को लेकर भी सतर्क हो जाएं, तो मानसिक सेहत को लेकर एक बड़ी अड़चन दूर हो सकती है। यदि हम मन को लेकर सतर्क नहीं है और इससे जुड़ी परेशानियों को गंभीरता से नहीं लेते हैं तो इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि जटिल और जानलेवा शारीरिक बीमारियों को भी अधिक समय तक खुद से दूर नहीं रख पाएंगे।

इसलिए खुद के लिए हमारी जिम्मेदारी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी समाज व परिवार के लिए हमारी चिंता।


अपने लिए वह समय भी निकालें जब मन पूरी तरह से बाहरी दबावों से मुक्त हो और स्वत जिस कार्य करने से हमें आनंद की प्राप्ति हो, कुछ मिनटों के लिए ही सही हमें वह कार्य अवश्य करना चाहिए।

मन पर कोई बोझ हो तो उसे किसी मित्र या हितैषी से बांटे... कहा जाता है कि "बांटने से दुख खत्म" होता है। मन की सेहत को लेकर जो पहल करते हैं या इलाज कराना चाहते हैं उनका खुलकर साथ दें।

किसी भी भ्रामक समाचार या झूठी बातों में पढ़कर खुद पर कोई दबाव न बनाएं। शांत मन से सही तथ्य जानने का प्रयास करें। कई बार हम गलत बातों के भ्रम में पड़कर अपना सुख चैन गवा बैठते हैं, जो कि बिल्कुल भी उचित नहीं होता है।


यह समझ ले कि कोई मंथरा आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है बस जरूरी है कि हम अपने मन को कैकेई ना बनने दें, कहने का तात्पर्य है कि दूसरों द्वारा गलत बातें के बहकावे में आने से सदैव बचने का प्रयास करना चाहिए।


हमारे मन में चार प्रकार के विचार होते हैं ‌

१.. शुद्ध, शक्तिशाली, सकारात्मक व निस्वार्थ

२.. अहम व क्रोध से भरे नकारात्मक विचार जो घृणा, द्वेष, भय, अस्वीकृति व निंदा को जन्म देते हैं।

३.. कुछ अनिवार्य विचार होते हैं जो हमारे काम से संबंध रखते हैं। यह तटस्थ विचार हैं।

४.. चौथी प्रकार के वो विचार कहलाते हैं जो अतीत या भविष्य से जुड़े होते हैं। इन पर समय या ऊर्जा नष्ट करना व्यर्थ है।

जब हम आनंद में हो कर कर्म करते हैं, तो मन को कोई कष्ट मालूम नहीं पड़ता। हजारों कर्म हाथों से होते रहने पर भी मन निर्मल और शांत रहता है। इसलिए हमें अपने नजरिए में लचीलापन लाना जरूरी है। यह मानकर चलना चाहिए कि बिना कठिनाइयों के जीवन का आनंद नहीं पाया जा सकता है। हमेशा मन को खुश रखे और खुशियां ही बांटते चलें।

हमारे पास *जो है* *जैसा है* और *जितना है* इसी सूत्र को अपनाकर अपने काम में पूरी तरह से डूब जाएं। यह बिल्कुल सत्य बात है कि सिर्फ पैसों से खुशियां नहीं मिल सकती हैं।


किसी भी तरह का डर अपने मन से निकाल दें। ताकि जीवन की एकरसता खत्म हो सके। निडर होकर अपना कार्य करें, जिससे हम अपना १०० प्रतिशत दे सकते हैं। हमारा यह समर्पण मन को संतुष्टि देने के साथ खुशियों से भर सकता है।


मेरी राय में आज से ही यह खूबसूरत पहल करें क्योंकि यह संसार परिवर्तनशील है। यहां परिस्थितियां बनती और बिगड़ती रहती हैं। यह जीवन परमात्मा की अमूल्य देन है और इस अमूल्य देन को व्यर्थ में गंवाने की आवश्यकता नहीं है।


आजकल नवरात्रि पर्व का शुभ अवसर है और रामलीला भी हो रही है, तो हमें अपने देवी-देवताओं से यह शिक्षा लेनी चाहिए कि किस तरह उन्होंने भी जब मानव रूप में धरती पर जन्म लिया तो वह सारे सुख दुख भोगे, जो मानव को अपने जीवन में भोगना पड़ता है। साथ  ही उन्होंने हमें यह शिक्षा भी दी कि अगर हमारे मन में निश्चल प्रेम की धारा बह रही है तो कोई नकारात्मकता हमारे मन को कमजोर नहीं कर सकती है।


यदि कभी-कभी मन कमजोर पड़ता है और राह भटकता भी है, तो याद रखें कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। और सबसे बड़ी बात है कि *मन ही मन का सच्चा मीत*।



देश के हर जिला मुख्यालय पर सूचना भवन संकुल का निर्माण कराये, भारत सरकार :- शास्त्री

 


ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार आचार्य श्रीकांत शास्त्री जी ने भारत सरकार से मांग करते हुए कहा है कि जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश के राजधानी सहित कुछ जिलों में सूचना भवन संकुल का निर्माण कराया जा रहा है उसी प्रकार से देश के हर जनपद मुख्यालयो पर सूचना भवन संकुल का निर्माण कराया जाए।


साथ ही श्री शास्त्री जी ने मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश से भी उपरोक्त मांग को दोहराते हुए कहा है कि आपकी सरकार द्वारा जिस प्रकार से पत्रकारों के सम्मान में राजधानी, गोरखपुर एवं शाहजहांपुर मे सूचना भवन संकुल का निर्माण कराया जा रहा है, जो देश मे अलग पहचान होगी उसी प्रकार से मीडिया कर्मियों के सम्मान मे अपने प्रदेश के समस्त जिलों में सूचना भवन संकुल का निर्माण कराए, जिससे जिलों में भेदभाव न रह सके।


श्री शास्त्री जी ने कहा कि जहां एक ओर देशभर में सूचना भवन संकुल का निर्माण कराया जाना नितांत आवश्यक है वहीं दूसरी ओर पत्रकारों मे एकरूपता व उनके मान-सम्मान का ख्याल होगा वही तीसरी ओर भारत सरकार के एक देश एक कानून के सूत्र  को बल मिलेगा।


शास्त्री जी ने बताया कि ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन पिछली सरकारों से पत्रकारों के सुविधा हेतु प्रेस क्लब संकुल बनाए जाने की मांग करता चला आ रहा है, जिससे पत्रकार आधुनिक संचार माध्यमों से परिपूर्ण एवं सुविधाजनक ढंग से अपने समाचारों को संप्रेषित कर सके।


दशकों से एसोसिएशन द्वारा प्रेस क्लब संकुल बनाने की मांग को पुनः दोहराते हुए भारत सरकार तत्काल पत्रकारों की समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए, देश के हर जनपद मुख्यालयों पर सूचना भवन संकुल का निर्माण कराएं।

"प्लास्टिक के प्रति दीवानापन"

दीवाने हुए पागल... सही तो है यह दीवानापन धीरे-धीरे पागलों की तरह ही बढ़ता जा रहा है। एक तरफ तो कहा जाता है कि प्लास्टिक मुक्त धरती और प्लास्टिक मुक्त देश बनाना है और वहीं दूसरी तरफ जिसको देखो वह  अनायास ही, या जानबूझकर  प्लास्टिक के प्रति अपनी आसक्ति बढ़ाता ही जा रहा है।
जहां यह बात सही है कि प्लास्टिक धरती के लिए बहुत नुकसानदायक है। तो फिर निरंतर इसका उत्पादन क्यों होता जा रहा है???? इतना बड़ा प्लास्टिक उद्योग फल फूल रहा है। क्या उस वक्त किसी को यह पता नहीं था कि प्लास्टिक का कचरा निस्तारण करना कितना कठिन कार्य है?

चलिए अब तो सब यह भली-भांति जानते हैं की प्लास्टिक कितना नुकसानदायक है, फिर क्यों आंखें मूंदे बैठे हैं। अगर पहले गलती हो गई है तो उसको सुधारा नहीं जा सकता क्या? 

सब कुछ सजावटी व सुंदर लगाने के चक्कर में हम इस प्लास्टिक के चक्रव्यूह में फंस कर रह गए हैं। हर तरफ हर चीज में किसी न किसी रूप में प्लास्टिक दिख ही जाता है।

हमारे बचपन को वास्तव में सुनहरा काल कहना चाहिए 70 - 80 के दशक तक प्लास्टिक की इतनी निर्भरता नहीं थी। राशन वगैरह सब कागज के पैकेट में या झोले में या गत्ते की पेटी में करके आते थे। राशन घर में साफ किया जाता था, क्योंकि खुला ही बिकता था और सब लोग आराम से करते भी थे।

लेकिन अब तो हर चीज प्लास्टिक में पैक मिलेगी और यदि खुली मिल भी जाए तो प्लास्टिक की पन्नी में डालकर ही मिलेगी।

सरकार की तरफ से कई बार प्लास्टिक बंद अभियान चलाए गए। छोटे, बड़े दुकानदारों, सब्जी वालों, फल वालों पर चालान भी हुए लेकिन कुछ ही दिनों में सब टाॅय टाॅय फिसस्

इसके पीछे ढुलमुल सरकारी नीति के साथ, आम जनता का कमजोर मनोबल भी है। अगर कोई चीज धरती के लिए इतनी नुकसानदायक है, तो उसको कम से कम उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।

कम से कम सब्जी, फल, राशन वगैरा तो झोले में ला सकते हैं। अगर दरवाजे पर ही सब्जी ले रहे हैं तो बांस की डलिया प्रयोग में ला सकते हैं। एक बार इस्तेमाल करके फेंकने वाली वस्तुओं पर रोक लगानी चाहिए।

होटलों और रेस्टोरेंट आदि में भी खाना पैक करने के लिए प्लास्टिक के डिब्बों पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि वह डिब्बे फिर कूड़े में ही जाते हैं। कोशिश तो करनी चाहिए कि अगर खाना पैक करा कर घर ले जाना है तो घर से ही अपना बर्तन लेकर जाएं और होटल वालों को भी इसे प्रोत्साहित करना चाहिए। प्रयास करने से सब कुछ संभव हो सकता है। बस जरूरत सही दिशा में सही कदम बढ़ाने की है। और वह दिन आज से ही शुरू हो सकता है।

हम सभी को इस बात पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए कि हम व्यर्थ में ज्यादा प्लास्टिक का कचरा ना पैदा करें। *यूज एंड थ्रो* की आदत को कम करने का प्रयास करना चाहिए। हमारा छोटा सा प्रयास ही बड़े बड़े बदलाव ला सकता है।

प्लास्टिक कितना नुकसानदायक है, यह जानते तो सभी लोग हैं। लेकिन इस्तेमाल करते समय भूल जाते हैं। 

तो कृपया आप अपनी भूल सुधारें और प्लास्टिक के प्रति अपनी निर्भरता को धीरे धीरे कम करते जाएं।
आप लोगों को शायद थोड़ा अजीब लगे लेकिन मैं खुद दरवाजे पर सब्जी बांस की डलिया में ही लेती हूं और अपनी कॉलोनी के सभी लोगों से यह आग्रह भी करती हूं कि वह भी ऐसा ही करें और ऐसा पिछले कई सालों से कर रही हूं और साथ ही जो नमकीन वगैरा के पैकेट आते हैं उन्हें भी खाली होने के बाद कूड़े आदि के लिए इस्तेमाल करती हूं। बेवजह पॉलिथीन में सामान लेने से हमेशा बचती हूं। यह सब प्रयास करके मुझे बहुत खुशी भी मिलती है।

तो आइए हम सब मिलकर प्लास्टिक का कचरा कम करने का सार्थक प्रयास करते हैं *मुझमें है महात्मा*का ध्यान करते हुए गांधीजी को सच्ची श्रद्धांजलि देते हुए स्वच्छता को  लगातार अपनाते जाएं। अपने लक्ष्य को पाने के लिए निरंतर संघर्ष और प्रयास करते जाना चाहिए तभी तो हम कह सकते हैं कि *मुझमें है महात्मा*
पर्यावरण की शुद्धता के लिए बापू के विचारों को अपनाते हुए प्रकृति के साथ मेल बिठाकर चलते हुए ही सृष्टि को भारी विनाश से हम बचा सकते हैं।

हमें प्रकृति के साथ मधुर संबंध बनाना होगा। प्राकृतिक चीजों के प्रति दयालु बनना होगा और साथ ही अपनी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का बार-बार स्मरण करना चाहिए कि हमारे देश में हजारों वर्षों से पेड़, पौधों और प्रकृति के प्रति बहुत उदार भावना थी। और  उन्हें सजीव मानकर उनका पूजन और संरक्षण किया जाता है। और अपनी इस परंपरा को हमें निरंतर आगे बढ़ाने का पूरी दृढ़ता से प्रयास करना चाहिए।
सब की भलाई में ही विश्व की भलाई निहित है, और पूरे विश्व की भलाई प्रकृति की भलाई में निहित है। हम 
सबका इको फ्रेंडली बनना बहुत जरूरी है तभी वास्तव में हम कह सकते हैं कि *मुझमें है महात्मा*

डॉ कुसुम पांडेय
वरिष्ठ समाजसेवी, अधिवक्ता एवं लेखिका

बने जर्नलिस्ट रजिस्टर, मिले पत्रकारों को भी पेंशन :- शास्त्री

 

ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार आचार्य श्रीकांत शास्त्री जी ने नेशनल जर्नलिस्ट रजिस्टर बनाने की मांग की है जिससे कानूनी आधार पर पत्रकार की परिभाषा तय हो सकेगा,  वर्तमान में पत्रकार मात्र नाम का चौथा स्तम्भ है ऐसे में पत्रकार की कोई निर्धारित परिभाषा नहीं है उन्होंने कहा कि नेशनल जर्नलिस्ट रजिस्टर बनने से सभी पत्रकारों का नियम कानून के तहत रिकॉर्ड बन जायेगा, साथ ही उन्होंने कहा कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बने कानून भी सख्ती से लागू हो जिससे देश के समस्त मीडियाकर्मी वास्तविक रूप से न्यायपूर्ण बिना किसी दबाव के अपना कार्य कर सके।


उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री श्री बाजपेई एवं पूर्व उपराष्ट्रपति शेखावत जी का हवाला देते हुए बताया कि मीडिया जनता एवं सरकार के आंख व मुंह के रूप में रहते हैं वे जनता की समस्या सरकार तक एवं सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों को जनता तक पहुंचाते है।


शास्त्री जी ने साथ ही यह भी कहा कि नेशनल जर्नलिस्ट रजिस्टर के साथ पत्रकारों के लिए पेंशन भी जरूरी है जिसका घोषणा किया जाना चाहिए। देश के कुछ राज्य सरकारे पत्रकारों को पेंशन दे रही हैं  लेकिन सभी प्रदेशों में अब तक कोई फैसला नहीं लिया गया, जो बहुत ही खेद का विषय है, एसोसिएशन दशको से जरिए रजिस्ट्री, ईमेल, विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मो, स्वतः एवं जनप्रतिनिधियों व प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से देश व प्रदेश की सरकारों को अवगत कराता चला आ रहा है।  पत्रकारों को भी तीनों स्तंभों की तरह पेंशन आदि की सुविधा दी जानी चाहिए और इसके अलावा उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से डॉक्टरों, अधिवक्ताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, पुलिस बलों आदि के लिए पूरे देश में एक नियम-कानून है उसी प्रकार से पत्रकारों का भी एक नियम-कानून होना चाहिए। देश का हर पत्रकार राष्ट्रहित सर्वोपरि रखते हुए अपने दायित्वों का पूरा का पूरा निर्वहन करता है। उसके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव होना बहुत ही दुखद है। देश के सभी पत्रकारों को भी स्वास्थ्य बीमा कवर के तहत शामिल किया जाना चाहिए।


श्री शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री जी से नेशनल जर्नलिस्ट रजिस्टर एवं पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने व पेंशन, बीमा आदि मांगों पर विचार करने के लिए अनुरोध किया गया है।