मानव चरित्र का सबसे प्रधान स्वरूप मन है। भगवान ने भी धरती पर अवतार लेकर लीला करने के लिए मन बनाया, क्योंकि ईश्वर तो निर्गुण होते हैं और भगवान ने जब मन बनाया तभी इस सांसारिक लीला में तल्लीन हो पाए।
मानव जीवन अमूल्य है लेकिन मनुष्य बहुत जल्दी हताश और निराश हो जाता है। इस भौतिकवादी युग में मनुष्य हर वस्तु जल्दी से जल्दी प्राप्त कर लेना चाहता है। इस चाहत के चलते उसे जब अभीष्ट की प्राप्ति नहीं हो पाती तो वह निराश हो जाता है और अपने अमूल्य जीवन तक को ही नष्ट करने की ठान लेता है। हमें सदैव यह मानकर चलना चाहिए कि *मन से बड़ा न कोय*
आजकल मानसिक स्वास्थ्य भी एक बहुत बड़ी समस्या है। कोविड-19 में मनुष्य के लिए मानसिक सेहत की चुनौती को और बढ़ा दिया है। हालांकि जितना ध्यान हम शरीर की बीमारियों को दूर करने के लिए करते हैं, उतना ही अनदेखी मन की सेहत के लिए करते हैं।
यह एक चेतावनी भी है कि यदि हम शरीर की तरह मन की सेहत को लेकर सजग नहीं हुए तो हमारी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यदि हमारे सब्र और संकल्प का बांध टूट रहा है तो याद रखें यह हमारी मनोदशा को और खराब कर सकती है।
ऐसी स्थिति में हमें यह सकारात्मक विचार लाने की जरूरत है, कि सिर्फ हम ही नहीं हैं और भी लोग किसी न किसी परेशानी को झेल रहे हैं। कोविड-19 से पहले भी इंसानी जीवन बहुत सी मनोवैज्ञानिक परेशानियों को झेल रहा था पर इस महामारी ने उसको और गंभीर बना दिया है।
कोरोनावायरस को लेकर डर और अनिश्चितता मानसिक सेहत को और ज्यादा खराब करने में इंधन का काम कर सकती है।
इस समय ज्यादातर लोग भावनात्मक रूप से खुद को कमजोर महसूस कर रहे हैं। जरूरी है कि मन की परेशानियों को लेकर भी सतर्क हो जाएं, तो मानसिक सेहत को लेकर एक बड़ी अड़चन दूर हो सकती है। यदि हम मन को लेकर सतर्क नहीं है और इससे जुड़ी परेशानियों को गंभीरता से नहीं लेते हैं तो इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि जटिल और जानलेवा शारीरिक बीमारियों को भी अधिक समय तक खुद से दूर नहीं रख पाएंगे।
इसलिए खुद के लिए हमारी जिम्मेदारी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी समाज व परिवार के लिए हमारी चिंता।
अपने लिए वह समय भी निकालें जब मन पूरी तरह से बाहरी दबावों से मुक्त हो और स्वत जिस कार्य करने से हमें आनंद की प्राप्ति हो, कुछ मिनटों के लिए ही सही हमें वह कार्य अवश्य करना चाहिए।
मन पर कोई बोझ हो तो उसे किसी मित्र या हितैषी से बांटे... कहा जाता है कि "बांटने से दुख खत्म" होता है। मन की सेहत को लेकर जो पहल करते हैं या इलाज कराना चाहते हैं उनका खुलकर साथ दें।
किसी भी भ्रामक समाचार या झूठी बातों में पढ़कर खुद पर कोई दबाव न बनाएं। शांत मन से सही तथ्य जानने का प्रयास करें। कई बार हम गलत बातों के भ्रम में पड़कर अपना सुख चैन गवा बैठते हैं, जो कि बिल्कुल भी उचित नहीं होता है।
यह समझ ले कि कोई मंथरा आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है बस जरूरी है कि हम अपने मन को कैकेई ना बनने दें, कहने का तात्पर्य है कि दूसरों द्वारा गलत बातें के बहकावे में आने से सदैव बचने का प्रयास करना चाहिए।
हमारे मन में चार प्रकार के विचार होते हैं
१.. शुद्ध, शक्तिशाली, सकारात्मक व निस्वार्थ
२.. अहम व क्रोध से भरे नकारात्मक विचार जो घृणा, द्वेष, भय, अस्वीकृति व निंदा को जन्म देते हैं।
३.. कुछ अनिवार्य विचार होते हैं जो हमारे काम से संबंध रखते हैं। यह तटस्थ विचार हैं।
४.. चौथी प्रकार के वो विचार कहलाते हैं जो अतीत या भविष्य से जुड़े होते हैं। इन पर समय या ऊर्जा नष्ट करना व्यर्थ है।
जब हम आनंद में हो कर कर्म करते हैं, तो मन को कोई कष्ट मालूम नहीं पड़ता। हजारों कर्म हाथों से होते रहने पर भी मन निर्मल और शांत रहता है। इसलिए हमें अपने नजरिए में लचीलापन लाना जरूरी है। यह मानकर चलना चाहिए कि बिना कठिनाइयों के जीवन का आनंद नहीं पाया जा सकता है। हमेशा मन को खुश रखे और खुशियां ही बांटते चलें।
हमारे पास *जो है* *जैसा है* और *जितना है* इसी सूत्र को अपनाकर अपने काम में पूरी तरह से डूब जाएं। यह बिल्कुल सत्य बात है कि सिर्फ पैसों से खुशियां नहीं मिल सकती हैं।
किसी भी तरह का डर अपने मन से निकाल दें। ताकि जीवन की एकरसता खत्म हो सके। निडर होकर अपना कार्य करें, जिससे हम अपना १०० प्रतिशत दे सकते हैं। हमारा यह समर्पण मन को संतुष्टि देने के साथ खुशियों से भर सकता है।
मेरी राय में आज से ही यह खूबसूरत पहल करें क्योंकि यह संसार परिवर्तनशील है। यहां परिस्थितियां बनती और बिगड़ती रहती हैं। यह जीवन परमात्मा की अमूल्य देन है और इस अमूल्य देन को व्यर्थ में गंवाने की आवश्यकता नहीं है।
आजकल नवरात्रि पर्व का शुभ अवसर है और रामलीला भी हो रही है, तो हमें अपने देवी-देवताओं से यह शिक्षा लेनी चाहिए कि किस तरह उन्होंने भी जब मानव रूप में धरती पर जन्म लिया तो वह सारे सुख दुख भोगे, जो मानव को अपने जीवन में भोगना पड़ता है। साथ ही उन्होंने हमें यह शिक्षा भी दी कि अगर हमारे मन में निश्चल प्रेम की धारा बह रही है तो कोई नकारात्मकता हमारे मन को कमजोर नहीं कर सकती है।
यदि कभी-कभी मन कमजोर पड़ता है और राह भटकता भी है, तो याद रखें कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। और सबसे बड़ी बात है कि *मन ही मन का सच्चा मीत*।